
भारतीय इतिहास में 25 अगस्त का दिन एक दर्दनाक तारीख के रूप में दर्ज है। यह वह दिन है जब देश के दो प्रमुख शहर, मुंबई और हैदराबाद, सीरियल बम धमाकों से दहल गए थे। 25 अगस्त, 2003 को मुंबई में हुए दोहरे कार बम विस्फोटों ने 54 लोगों की जान ले ली, जबकि 25 अगस्त, 2007 को हैदराबाद में हुए धमाकों में 42 लोगों की मौत हो गई थी। आज इन हमलों को क्रमशः 22 और 18 साल हो चुके हैं, लेकिन इन घटनाओं के जख्म आज भी ताजा हैं।
मुंबई 2003: टैक्सी में छिपे मौत के सौदागर
25 अगस्त, 2003 को मुंबई में हुए दोहरे कार बम विस्फोटों ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था। एक धमाका प्रतिष्ठित गेटवे ऑफ इंडिया के पास और दूसरा व्यस्त जावेरी बाजार में हुआ था। इन हमलों में 54 लोग मारे गए और 244 घायल हुए। जांच में यह बात सामने आई कि दोनों हमलों में एक जैसा तरीका अपनाया गया था: टैक्सी में बम रखे गए थे, जो एक निश्चित समय पर फटे।
इस मामले की जांच में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ। यह भारत में शायद पहला मामला था, जहाँ एक परिवार – पति, पत्नी और दो नाबालिग बेटियां – एक आतंकवादी साजिश में शामिल थे। जांच में पाया गया कि ये सभी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हुए थे और उन्होंने दुबई में बैठकर धमाकों की साजिश रची थी। सरकारी वकील उज्जवल निकम ने यह बात साबित कर दी थी।

धमाकों के बाद की स्थिति भयावह थी। दोनों ही जगहें भीड़भाड़ वाली थीं। गेटवे ऑफ इंडिया के पास एक टैक्सी में बम रखा गया था, जिसे एक परिवार ने खाने के बहाने छोड़ दिया था। धमाकों के बाद चारों ओर मलबा बिखर गया, और 200 मीटर की दूरी पर स्थित ज्वेलरी शोरूम के शीशे तक टूट गए थे। लगभग 6 साल बाद, अदालत ने हनीफ सईद, उसकी पत्नी फहमीदा सईद और अशरफ अंसारी को इन जघन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी।
हैदराबाद 2007: गोकुल चाट और लुंबिनी पार्क में खून-खराबा
मुंबई के जख्म अभी पूरी तरह भरे भी नहीं थे कि 25 अगस्त, 2007 को निजामों के शहर हैदराबाद में भी इसी तरह की घटना हुई। शहर के दो भीड़भाड़ वाले स्थानों, गोकुल चाट और लुंबिनी पार्क, में लगभग एक साथ हुए विस्फोटों में 42 लोग मारे गए और 50 से अधिक घायल हुए।

पहला विस्फोट लुंबिनी पार्क में खचाखच भरे लेजर शो ऑडिटोरियम में हुआ, जिसके कुछ ही मिनट बाद गोकुल चाट रेस्टोरेंट में दूसरा विस्फोट हुआ। बम फटते ही दोनों जगहों पर लाशों का ढेर लग गया था। राहत की बात यह थी कि दिलसुखनगर में भी एक बम लगाया गया था, जिसे समय रहते निष्क्रिय कर दिया गया।

इन हमलों के दोषियों की गिरफ्तारी और सजा की प्रक्रिया भी लंबी चली। मार्च 2009 में पहली गिरफ्तारी हुई। इन घटनाओं ने देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए। 25 अगस्त का यह दिन भारत के लिए न केवल एक त्रासदीपूर्ण स्मृति है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि देश को आतंकवाद और उसके समर्थकों के खिलाफ हमेशा सतर्क रहने की जरूरत है।

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