
कन्नूर के सदानंदन मास्टर को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया जाना सिर्फ एक राजनीतिक नियुक्ति नहीं, बल्कि केरल में पिछले कई दशकों से जारी वामपंथी हिंसा की सच्चाई को पूरे देश के सामने लाने का प्रतीक बन गया है। कृत्रिम पैरों के सहारे खड़े सदानंदन मास्टर ने माकपा के गढ़ कहे जाने वाले कन्नूर में न सिर्फ हिंसा का सामना किया, बल्कि आज भी डटकर खड़े हैं।
कन्नूर: जहां राजनीति की कीमत जान से चुकानी पड़ती है
कन्नूर जिला केरल में वामपंथी राजनीति का मजबूत गढ़ माना जाता है। रिपोर्टों के मुताबिक, पिछले पांच दशकों में यहां आरएसएस और भाजपा से जुड़े 300 से अधिक कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है, जबकि सैकड़ों लोगों को जीवनभर के लिए अपाहिज बना दिया गया। सदानंदन मास्टर भी इसी हिंसा का शिकार बने थे, जब उनके दोनों पैरों को काट दिया गया था।
भाजपा के लिए बड़ा राजनीतिक संदेश
सदानंदन मास्टर की राज्यसभा में नियुक्ति को भाजपा ने राजनीतिक संदेश के रूप में भी प्रस्तुत किया है। पार्टी के लिए यह उन हजारों कार्यकर्ताओं को श्रद्धांजलि है जिन्होंने केरल में संगठन को खड़ा करने के लिए अपनी जान तक दे दी। यह नियुक्ति अगले साल अप्रैल में होने वाले केरल विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए जनसंपर्क का बड़ा जरिया बनेगी।
अमित शाह ने दिखाई थी लड़ाई की दिशा
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए अमित शाह ने 2017 में कन्नूर से तिरुअनंतपुरम तक 21 दिनों की विशाल पदयात्रा निकाली थी। यह पदयात्रा वामपंथी हिंसा के खिलाफ थी, जिसे पूरे देश में काफी सराहना मिली थी। अमित शाह ने हाल ही में तिरुअनंतपुरम में ‘विकसित केरलम सम्मेलन’ को संबोधित करते हुए फिर से यह याद दिलाया कि “भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने जो सपना देखा था, उसे अब पूरा करने का समय आ गया है।”
राष्ट्रपति ने चार लोगों को किया मनोनीत
रविवार को राष्ट्रपति द्वारा सदानंदन मास्टर समेत चार लोगों को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। यह न सिर्फ केरल के लिए बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण घटनाक्रम है। इससे एक दिन पहले अमित शाह ने साफ कर दिया था कि पार्टी केरल में अपने कार्यकर्ताओं के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देगी।

माकपा नेताओं ने भी मानी सचाई
दिलचस्प बात यह है कि माकपा के कई वरिष्ठ नेता भी समय-समय पर कन्नूर और केरल में वामपंथी हिंसा की सच्चाई को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुके हैं। इसके बावजूद, आज भी यह मुद्दा राज्य की राजनीति में ध्रुवीकरण का बड़ा कारण बना हुआ है।
पंचायत चुनाव में भी पड़ सकता है असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि सदानंदन मास्टर को राज्यसभा में भेजने से भाजपा को जमीनी स्तर पर पंचायत चुनावों में भी सहानुभूति और समर्थन मिल सकता है। केरल के कई पंचायत क्षेत्रों में वामपंथी हिंसा को लेकर स्थानीय स्तर पर असंतोष पहले से मौजूद है। ऐसे में पार्टी इसे गांव-गांव तक पहुंचाने की कोशिश करेगी।
अब संसद में सुनाई देगा जमीनी दर्द
सदानंदन मास्टर जैसे नेता के संसद में पहुंचने से उन हजारों परिवारों की आवाज भी संसद के पटल पर गूंजेगी जो वामपंथी हिंसा से प्रभावित हुए हैं। भाजपा इसे ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ के खिलाफ लोकतांत्रिक लड़ाई का प्रतीक मान रही है। देखना होगा कि क्या यह कदम भाजपा को केरल की राजनीति में नई ताकत दे पाता है या नहीं।

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