
पूर्णिया से सांसद राजेश रंजन ‘पप्पू’ यादव ने दावा किया है कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा‑नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में नहीं लड़ेगा। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि भाजपा नीतीश कुमार को तभी तक सहन करेगी जब तक चुनाव न हो जाएं। चुनाव से ठीक पहले या बाद में उन्हें किनारे लगा दिया जाएगा।
गठबंधन के भीतर छींटाकशी का हवाला
यादव ने राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान की हालिया टिप्पणियां याद दिलाते हुए कहा कि दोनों नेता बार‑बार नीतीश के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। गठबंधन धर्म की आड़ में वे लगातार उसी चेहरे को कमजोर कर रहे हैं, जिसके सहारे चुनाव लड़ने का दावा करते हैं।
उन्होंने तर्क दिया कि यह सिलसिला भाजपा की सोची‑समझी रणनीति का हिस्सा है, ताकि नीतीश कुमार की छवि और विश्वसनीयता को धीरे‑धीरे क्षति पहुँचाई जाए।
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर गंभीर आरोप
बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को पप्पू यादव ने “एक सुनियोजित साजिश” बताया। उनके मुताबिक, “बीएलओ गाँवों में गए ही नहीं, फिर भी मनमाने ढंग से नाम काटे‑जोड़े जा रहे हैं। मेरे इलाके के 22‑24 गाँवों में सूची अद्यतन का कोई निरीक्षण नहीं हुआ।”
उन्होंने दावा किया कि बड़ी संख्या में दिल्ली या अन्य राज्यों में रहने वाले लोगों के नाम बिहार की सूचियों में जोड़ दिए गए, जबकि भाजपा-विरोधी इलाकों के मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं।
वोट कटने की मॉडल को असम‑बंगाल तक ले जाने की तैयारी
पप्पू यादव ने चेतावनी दी कि बिहार के बाद यही रणनीति असम और पश्चिम बंगाल में दोहराई जा सकती है। उन्होंने कहा, “एसआईआर के जरिए सबसे पहले बिहार के मतदाताओं पर हमला हुआ है। अगला निशाना पूर्वोत्तर और बंगाल हो सकता है।”
सांसद ने बताया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और महागठबंधन के अन्य घटक इस मुद्दे पर एकजुट हैं। हम लोग सुप्रीम कोर्ट, संसद और सड़कों सहित तीन मोर्चों—पर लड़ने जा रहे हैं। यादव ने चुनाव आयोग से पारदर्शी जांच और बीएलओ की भौतिक उपस्थिति सुनिश्चित कराने की मांग की।
भाजपा की ‘दोहरी रणनीति’ का आरोप
यादव के अनुसार भाजपा एक तरफ नीतीश कुमार को चेहरा बनाकर ‘डेवलपमेंट मॉडल’ का दावा करती है, दूसरी तरफ कानून‑व्यवस्था की कथित विफलताओं को उछालकर स्वयं नीतीश पर ही प्रहार करती है। कानून‑व्यवस्था के बिगड़ते हालात और ताबड़तोड़ घटनाएं नीतीश कुमार की विश्वसनीयता को कमज़ोर करने की क्रमिक कोशिश हैं।
राजनीतिक संदेश और संभावित असर
पप्पू यादव के बयान ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। यदि एनडीए सचमुच चुनाव से पहले नेतृत्व बदलने पर विचार कर रहा है, तो–
जद (यू) के भीतर असंतोष बढ़ सकता है।
विपक्ष “विश्वासघात” का नैरेटिव तेज कर सकता है।
महागठबंधन को तेजस्वी यादव के नेतृत्व में संभावित लाभ मिल सकता है।
हालांकि भाजपा ने अभी तक सार्वजनिक रूप से नीतीश के नेतृत्व पर कोई सवाल नहीं उठाया, लेकिन सहयोगी दलों की लगातार आलोचना ने अटकलों को हवा दे दी है।
पप्पू यादव के तीखे आरोप न सिर्फ एनडीए की अंदरूनी रणनीति पर सवाल उठाते हैं, बल्कि बिहार में मतदाता सूची संशोधन की प्रक्रिया को भी कठघरे में खड़ा करते हैं। आगामी महीनों में यह स्पष्ट होगा कि भाजपा‑जद (यू) रिश्तों में दरार कितनी गहरी है और एसआईआर का विवाद चुनावी समीकरणों को किस हद तक प्रभावित करता है।

गांव से लेकर देश की राजनीतिक खबरों को हम अलग तरीके से पेश करते हैं। इसमें छोटी बड़ी जानकारी के साथ साथ नेतागिरि के कई स्तर कवर करने की कोशिश की जा रही है। प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक की राजनीतिक खबरें पेश करने की एक अलग तरह की कोशिश है।



