
झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार कारण है उनके बेटे का अस्पताल में निरीक्षण करते हुए वायरल हुआ वीडियो। वीडियो सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने मंत्री पर तीखा हमला बोला है। भाजपा विधायक सीपी सिंह ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए मंत्री इरफान अंसारी पर जोरदार निशाना साधा और कहा कि यह पद के दुरुपयोग का स्पष्ट उदाहरण है।
“पद का दुरुपयोग, मंत्री नहीं उनका बेटा निरीक्षण कर रहा”
सीपी सिंह ने कहा कि भाजपा किसी के पारिवारिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती, लेकिन जब कोई मंत्री अपने पद का उपयोग अपने परिवार को अनाधिकृत रूप से ताकत देने में करता है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा, “आप मंत्री हैं, आपका बेटा नहीं। वह कोई अधिकारी भी नहीं है। ऐसे में उसका अस्पताल निरीक्षण करना गलत है। इरफान अंसारी को चाहिए कि वे अपने बेटे को संस्कार दें और पद की गरिमा को बनाए रखें।”
राहुल गांधी और कांग्रेस पर भी साधा निशाना
सीपी सिंह ने इस मौके पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भी तीखा प्रहार किया। उन्होंने कहा, “राहुल गांधी जब विदेश जाते हैं, तब भी देश के खिलाफ बोलते हैं और जब भारत में रहते हैं, तब भी भारत के खिलाफ बयानबाजी करते हैं। यह राष्ट्र विरोधी मानसिकता है और सरकार को ऐसे तत्वों पर लगाम लगानी चाहिए।” उन्होंने कांग्रेस पार्टी की नीतियों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि ये लोग केवल बयानबाजी के माहिर हैं और कभी भी ठोस रुख नहीं अपनाते।
शशि थरूर को लेकर कांग्रेस की आलोचना
सीपी सिंह ने कांग्रेस नेता शशि थरूर के मुद्दे पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जिन लोगों में राष्ट्रीयता की भावना होती है, कांग्रेस उन्हें दरकिनार कर देती है। “हर किसी का संस्कार और स्वाभिमान होता है, लेकिन राष्ट्र से बड़ा कुछ भी नहीं है। शशि थरूर ने विदेश में जाकर भारत की छवि को ऊंचा किया है, लेकिन कांग्रेस पार्टी ऐसे नेताओं को प्रोत्साहित करने के बजाय बायकाट करती है।”
संसद में उठेगा मुद्दा, सरकार देगी जवाब
सीपी सिंह ने यह भी कहा कि संसद का मानसून सत्र शुरू हो चुका है और ऐसे विषयों को सदन में उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि यह मामला संसद में उठाया जाता है तो सरकार इस पर स्पष्ट जवाब देगी और सही वस्तुस्थिति सबके सामने आ जाएगी। उन्होंने दोहराया कि मंत्री का पद जनता की सेवा के लिए होता है, न कि पारिवारिक शक्ति प्रदर्शन के लिए।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि जनप्रतिनिधियों के परिवार के सदस्यों को किस हद तक अधिकार या हस्तक्षेप की छूट मिलनी चाहिए।

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