
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद जगदंबिका पाल ने एसआईआर (स्पेशल इलेक्शन रिव्यू) के मुद्दे को लेकर बड़ा बयान देते हुए इसे केवल चुनावी प्रक्रिया का नहीं, बल्कि अवैध नागरिकों के खिलाफ लड़ाई करार दिया है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा रोहिंग्या और बांग्लादेशियों जैसे अवैध रूप से भारत में रह रहे लोगों से जुड़ा है, जो मतदान प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
“क्या रोहिंग्या तय करेंगे बिहार-बंगाल की सरकार?”
जगदंबिका पाल ने सख्त लहजे में सवाल उठाते हुए कहा, “अगर कोई अवैध रूप से रहने वाला व्यक्ति वोटर नहीं हो सकता, तो क्या वह बिहार या बंगाल की सरकार चुनेगा?” उन्होंने कहा कि केवल 18 साल से ऊपर का भारतीय नागरिक ही मतदाता बन सकता है और उसे ही मतदान का अधिकार होना चाहिए।
चुनाव बहिष्कार की बात पर तंज
तेजस्वी यादव द्वारा चुनाव बहिष्कार के संकेत पर हमला करते हुए जगदंबिका पाल ने कहा कि लोकतंत्र में यह पहली बार हो रहा है जब कोई राजनीतिक व्यक्ति बहिष्कार की बात कर रहा है। उन्होंने कहा, “यह तो कभी आतंकवादी या माओवादी करते थे, न कि लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले राजनेता।”
एसआईआर का उद्देश्य बताया पारदर्शी
पाल ने एसआईआर को पूरी तरह पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया बताया। उन्होंने कहा कि यह डोर-टू-डोर वेरिफिकेशन अभियान है, जिसमें धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। जो भारतीय नागरिक मतदाता नहीं हैं, उन्हें मतदाता सूची में जोड़ा जाएगा, जबकि जो अवैध रूप से जुड़े हैं, उन्हें हटाया जाएगा।\

निर्वाचन आयोग की प्रक्रिया को बताया उचित
उन्होंने कहा कि अगर कोई नेपाली, बांग्लादेशी या रोहिंग्या नागरिक गलत तरीके से भारतीय मतदाता सूची में शामिल हुआ है, तो उसे हटाना निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है। आयोग लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह कदम उठा रहा है और इसका स्वागत होना चाहिए।
संसद में विपक्ष के रवैये पर भी निशाना
संसद में एसआईआर को लेकर हुए हंगामे पर भी जगदंबिका पाल ने नाराजगी जताई। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि यह सब एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है ताकि संसद की कार्यवाही बाधित हो। उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने चर्चा के लिए बार-बार अपील की, लेकिन विपक्ष ने पूरा सप्ताह बर्बाद कर दिया।
लोकतंत्र में जवाबदेही ज़रूरी
जगदंबिका पाल के बयान से यह स्पष्ट होता है कि भाजपा अब एसआईआर को अवैध वोटरों की पहचान से जोड़कर एक बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा बना रही है। वहीं, विपक्ष की रणनीति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। आने वाले समय में यह मुद्दा और अधिक राजनीतिक रूप ले सकता है।

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