
वर्ष 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट मामले में 17 वर्षों की लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद आज (गुरुवार) राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत अपना फैसला सुनाएगी। इस बहुप्रतीक्षित निर्णय से जुड़े कानूनी और राजनीतिक मायनों पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।
19 अप्रैल को सुरक्षित रखा गया था फैसला
एनआईए कोर्ट ने 19 अप्रैल 2024 को मामले की सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। अदालत ने बताया था कि मामले से संबंधित एक लाख से अधिक पृष्ठों के दस्तावेजों और सबूतों की गहन समीक्षा के लिए समय की आवश्यकता थी। अब आखिरकार वर्षों से लंबित इस केस में सच्चाई का पर्दाफाश होने की उम्मीद जताई जा रही है।
सात आरोपी, सभी जमानत पर रिहा
मामले में जिन सात लोगों पर मुकदमा चल रहा है, उनमें प्रमुख रूप से लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय के नाम शामिल हैं। इन सभी पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। वर्तमान में सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं। कोर्ट ने सभी को आज फैसले के समय मौजूद रहने का निर्देश दिया है।
क्या था मालेगांव धमाका मामला?
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में रमजान और नवरात्रि के बीच एक बम विस्फोट हुआ था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। यह विस्फोट शहर के भीड़भाड़ वाले भीकू चौक इलाके में उस समय हुआ था जब लोग मस्जिद के पास जमा थे। विस्फोट ने स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी थी।
323 गवाहों से हुई पूछताछ, 34 पलटे
इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की थी, जिनमें से 34 गवाह अपने पहले दिए गए बयानों से पलट गए। इस वजह से अभियोजन की मजबूती पर भी सवाल उठते रहे हैं। वहीं, बचाव पक्ष का दावा है कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं।
जांच एजेंसी बदली, बदल गया रुख
शुरुआत में इस केस की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने की थी। बाद में 2011 में यह मामला एनआईए को सौंपा गया। 2016 में एनआईए ने अदालत में एक चार्जशीट दाखिल की, जिसमें प्रज्ञा ठाकुर सहित कुछ आरोपियों को अपर्याप्त सबूतों के आधार पर बरी करने की सिफारिश की गई थी। हालांकि अदालत ने सभी को मुकदमे का सामना करने का आदेश दिया।
राजनीतिक सरगर्मी और संभावित असर
इस केस में नामजद कुछ आरोपी वर्तमान में सक्रिय राजनीति में हैं, जैसे प्रज्ञा सिंह ठाकुर जो भाजपा की सांसद हैं। ऐसे में फैसले के राजनीतिक असर की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता। यह निर्णय राजनीतिक दलों के लिए एक मुद्दा बन सकता है, खासकर चुनावी माहौल में।
नजरें फैसले पर टिकीं
देशभर में यह मामला वर्षों से सुर्खियों में रहा है और अब जब फैसला सामने आने वाला है, पीड़ित परिवारों के साथ-साथ आरोपियों और उनके समर्थकों में भी भारी उत्सुकता और तनाव का माहौल है। अब देखना यह होगा कि न्यायालय का फैसला किस दिशा में जाता है और इसका सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी प्रभाव कितना व्यापक होता है।

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