
नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव को लेकर विवाद अब न्यायिक दायरे में पहुंच गया है। उत्तराखंड हाई कोर्ट की खंडपीठ ने इस चुनाव के परिणामों की घोषणा पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया है कि चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी और मतदान सहित अन्य औपचारिकताएं प्रभावित नहीं होंगी।
याचिका में आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल
यह मामला देहरादून निवासी अभिषेक सिंह की याचिका से शुरू हुआ। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण निर्धारण में गंभीर लापरवाही की। उनका कहना है कि आरक्षण तय करने से पहले संबंधित पक्षों की राय नहीं ली गई, जो नियमों के विरुद्ध है। अभिषेक सिंह का दावा है कि इस अनियमितता से कई संभावित उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अवसर नहीं मिल पाया।
कोर्ट का आदेश और सरकार की जिम्मेदारी
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र और न्यायाधीश आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को 11 अगस्त तक अपना जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने साफ किया कि जब तक आगे का आदेश नहीं आता, तब तक चुनाव परिणाम घोषित नहीं किया जाएगा। साथ ही, चुनाव प्रक्रिया पर कोई असर न पड़े, इस पर भी बल दिया गया।
अधिवक्ता का बयान
मामले की पैरवी कर रहे अधिवक्ता संजय भट्ट ने बताया कि याचिका का मुख्य बिंदु आरक्षण प्रक्रिया की पारदर्शिता है। उन्होंने कहा, “देहरादून जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण तय करने में नियमों का पालन नहीं हुआ। इसी कारण चुनाव प्रक्रिया की वैधता पर सवाल खड़े हुए हैं।” उनका कहना है कि कोर्ट ने अंतरिम स्थगन दिया है और अगली सुनवाई में यह स्पष्ट होगा कि रोक बरकरार रहेगी या हटाई जाएगी।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार का कहना है कि आरक्षण प्रक्रिया पूरी तरह नियमों के अनुरूप हुई है। हालांकि, कोर्ट के आदेश के बाद अब सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से विस्तृत जवाब देना होगा।
अगली सुनवाई पर टिकी नजरें
अब सभी की नजरें 12 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें यह तय होगा कि चुनाव परिणामों पर लगी रोक जारी रहेगी या नहीं। यदि रोक बनी रहती है, तो परिणाम की घोषणा में देरी होगी और इससे जिला पंचायत की नई नेतृत्व टीम के गठन पर भी असर पड़ सकता है।
यह मामला न केवल उत्तराखंड में स्थानीय निकाय चुनावों की पारदर्शिता और निष्पक्षता को लेकर बहस छेड़ रहा है, बल्कि यह भी दर्शा रहा है कि चुनावी प्रक्रिया में आरक्षण जैसी संवेदनशील व्यवस्था पर कानूनी चुनौती कितनी अहम हो सकती है।

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