
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 17 अगस्त 1909 का दिन अमर गाथा के रूप में दर्ज है। इसी दिन मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए 25 वर्षीय क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया। उनके बलिदान ने न सिर्फ भारत में आजादी की चेतना को नई धार दी, बल्कि अंग्रेजी साम्राज्य की नींव तक हिला दी।
अमृतसर से लंदन तक का सफर
मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में एक संपन्न परिवार में हुआ। उच्च शिक्षा के लिए वे लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात इंडिया हाउस में विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे क्रांतिकारियों से हुई। यही स्थान भारतीय युवाओं का केंद्र था, जो मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए योजनाएं बना रहे थे। ढींगरा भी धीरे-धीरे इस क्रांतिकारी विचारधारा के प्रवाह में शामिल हो गए।
लंदन में रहते हुए उन्होंने देशभक्तों के शौर्य और बलिदान की कहानियां सुनीं। खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सत्येंद्र पाल और काशीराम जैसे शहीदों की फांसी ने उनके भीतर गुस्से की ज्वाला भर दी। वहीं, लाला लाजपत राय के ओजस्वी भाषण ने उन्हें राष्ट्र के लिए सर्वस्व बलिदान करने का संकल्प दे दिया।
कर्जन वायली पर हमला – अंग्रेजी सत्ता को सीधी चुनौती
ढींगरा ने विलासिता का जीवन त्यागकर क्रांति का रास्ता चुना। 1 जुलाई 1909 को उन्होंने लंदन के इंडिया हाउस में आयोजित कार्यक्रम में ब्रिटिश अधिकारी कर्नल सर विलियम हट कर्जन वायली को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। वायली ब्रिटिश भारतीय सेना और प्रशासन में उच्च पद पर रह चुका था और भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के लिए जिम्मेदार माना जाता था। इस घटना ने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को हिला कर रख दिया। यह पहली बार था जब किसी भारतीय क्रांतिकारी ने लंदन की धरती पर साम्राज्यवादी ताकत को सीधी चुनौती दी थी।
सबसे छोटा मुकदमा और ऐतिहासिक फैसला
मदन लाल ढींगरा की गिरफ्तारी के बाद ब्रिटिश शासन ने उन्हें जल्द से जल्द सजा देने की ठानी। महज 46 दिनों में मुकदमा पूरा कर फांसी का आदेश सुना दिया गया। 17 अगस्त 1909 को लंदन की पेंटनविले जेल में उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। भारतीय संस्कृति विभाग की जानकारी के अनुसार, मुकदमे के दौरान ढींगरा ने अपने कार्यों पर कोई पछतावा नहीं जताया। उन्होंने कहा – “मेरे इस कृत्य के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है। मैंने यह कदम अपने देश की स्वतंत्रता के लिए उठाया है और मुझे गर्व है कि मैंने भारत माता के लिए प्राणों की आहुति दी।”
बलिदान का असर और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
मदन लाल ढींगरा की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नया मोड़ दिया। उनकी फांसी के दिन जेल के बाहर कई भारतीय क्रांतिकारी श्रद्धांजलि देने पहुंचे। यह घटना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बनी। श्यामजी कृष्ण वर्मा और सावरकर जैसे नेताओं ने इसे भारत की आजादी की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बताया। ढींगरा की देशभक्ति से प्रेरित होकर हजारों युवाओं ने क्रांतिकारी मार्ग चुना।

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