
बिहार सहित देश के कई हिस्सों में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर चल रहे राजनीतिक विवाद के बीच मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने विपक्ष पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने ‘वोट चोरी’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल को भारतीय संविधान का अपमान बताया। सीईसी ने स्पष्ट किया कि चुनाव परिणामों के 45 दिनों के भीतर अगर कोई भी राजनीतिक दल उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर नहीं करता है, तो बाद में इस तरह के आरोप लगाना जनता को गुमराह करने जैसा है।
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ज्ञानेश कुमार ने कहा, “अगर समय रहते मतदाता सूचियों की त्रुटियों को ठीक नहीं किया जाता और मतदाता द्वारा उम्मीदवार चुनने के 45 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में चुनाव याचिका दायर नहीं की जाती, तो ‘वोट चोरी’ जैसे गलत शब्दों का इस्तेमाल करना भारत के संविधान का अपमान नहीं, तो और क्या है?” उन्होंने जोर दिया कि कानून के तहत चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद अनियमितताओं की शिकायत के लिए एक निश्चित समय सीमा होती है। इस अवधि के बाद केरल, कर्नाटक या बिहार में निराधार आरोप लगाना गलत है।
‘मशीन-पठनीय सूची निजता का उल्लंघन’
चुनाव आयोग द्वारा मशीन-पठनीय मतदाता सूची उपलब्ध न कराने के विपक्ष के आरोपों पर सीईसी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 में ही इस पर अपनी राय दी थी। उन्होंने बताया कि अदालत ने इसे मतदाता की निजता का उल्लंघन माना था। इसलिए चुनाव आयोग इस तरह की सूची जारी नहीं कर सकता।
बिहार एसआईआर पर दिया स्पष्टीकरण
बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान पर ज्ञानेश कुमार ने कहा कि मतदाता सूची में त्रुटियों के दावों और आपत्तियों के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर तक का समय निर्धारित है। उन्होंने कहा, “अभी भी 15 दिन का समय बाकी है और चुनाव आयोग सभी राजनीतिक दलों, उनके बूथ स्तरीय एजेंटों से अपील करता है कि अगर उन्हें मतदाता सूची में कोई त्रुटि मिलती है, तो वे निर्धारित प्रपत्रों में उसे प्रस्तुत करें। चुनाव आयोग के दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं।”
उन्होंने दोहरे मतदान के आरोपों पर भी बात की। सीईसी ने कहा कि जब ऐसे आरोपों के सबूत मांगे गए, तो कोई जवाब नहीं दिया गया। उन्होंने ऐसे आरोपों को झूठा बताते हुए कहा कि ऐसे बयानों से न तो चुनाव आयोग डरता है और न ही कोई मतदाता डरता है। ज्ञानेश कुमार के इस बयान ने यह साफ कर दिया है कि चुनाव आयोग मतदाता सूची के मामले में विपक्ष के आरोपों को गंभीरता से नहीं ले रहा है और वह अपनी प्रक्रिया पर अडिग है।

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