
समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा मतदाता सूची में नाम काटे जाने के आरोपों पर उत्तर प्रदेश के कई जिलाधिकारियों (डी.एम.) ने डेटा साझा करके जवाब दिया है। अखिलेश यादव ने ‘शपथ पत्र’ (एफिडेविट) के मुद्दे पर चुनाव आयोग को घेरते हुए कहा था कि उनके द्वारा दिए गए शपथ पत्रों की डिजिटल रसीदें चुनाव आयोग के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम पर सवाल उठाती हैं।
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग ने उनके द्वारा दिए गए शपथ पत्रों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है, जबकि उनके पास इसकी डिजिटल रसीद मौजूद है। इसके बाद, विभिन्न जिलों के डी.एम. ने अपने-अपने क्षेत्रों के डेटा को सार्वजनिक करते हुए आरोपों का खंडन किया।
विभिन्न जिलों के डी.एम. का स्पष्टीकरण
कासगंज के डी.एम. ने ‘एक्स’ पर जवाब देते हुए कहा कि उन्हें अमांपुर विधानसभा क्षेत्र के आठ मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए जाने की शिकायत मिली थी। जाँच में पाया गया कि सात मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में दो बार दर्ज थे, जिसके कारण नियमानुसार एक नाम को हटा दिया गया। इन सभी सात मतदाताओं के नाम अभी भी सूची में मौजूद हैं। आठवें मतदाता की मृत्यु हो चुकी थी, जिसके बाद उनकी पत्नी के आवेदन पर उनका नाम हटाया गया था।
बाराबंकी के डी.एम. ने भी इसी तरह का स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने बताया कि कुर्सी विधानसभा क्षेत्र के दो मतदाताओं के शपथ पत्र उनके नाम गलत ढंग से काटे जाने के संबंध में प्राप्त हुए थे। जाँच में यह स्पष्ट हो गया कि इन दोनों मतदाताओं के नाम अभी भी मतदाता सूची में दर्ज हैं।
जौनपुर के डी.एम. ने भी अपने जिले के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जौनपुर विधानसभा क्षेत्र के पाँच मतदाताओं के नाम गलत ढंग से हटाए जाने की शिकायत मिली थी। जाँच में पता चला कि ये सभी मतदाता 2022 से पहले ही मृत हो चुके थे। इसकी पुष्टि उनके परिवार के सदस्यों और स्थानीय सभासद ने भी की थी। इसलिए, इन मृतकों के नाम नियमानुसार हटाए गए थे और शिकायत पूरी तरह से “निराधार और भ्रामक” थी।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और डेटा की भूमिका
अखिलेश यादव ने अपने पोस्ट में चुनाव आयोग से भी शपथ पत्र देने की मांग की थी कि सपा को भेजी गई डिजिटल रसीद सही है। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ‘चुनाव आयोग’ और ‘डिजिटल इंडिया’ दोनों पर सवाल उठेंगे।
हालांकि, जिलाधिकारियों द्वारा साझा किए गए डेटा और स्पष्टीकरण ने सपा के आरोपों की सच्चाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना ने एक बार फिर चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और राजनीतिक दलों द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों की गंभीरता को रेखांकित किया है। सरकारी अधिकारियों ने सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए तुरंत जवाब दिया, जिससे जनता के सामने सही जानकारी पहुंच सके।

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