
केंद्र की मोदी सरकार ने एक ऐतिहासिक और बेहद महत्वपूर्ण विधेयक पेश करने की तैयारी कर ली है, जिसका सीधा असर देश की राजनीति और सरकार चलाने के तरीकों पर पड़ेगा। बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में संविधान (130वां संशोधन) विधेयक पेश किया, जिसका उद्देश्य प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को कुछ खास परिस्थितियों में पद से हटाना है। इस विधेयक के तहत, यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक लगातार हिरासत में रहता है, तो उसे 31वें दिन अपना पद छोड़ना होगा। इस कदम को सरकार ने संवैधानिक नैतिकता, सुशासन और जनता के विश्वास को बहाल करने के लिए जरूरी बताया है, जबकि विपक्ष ने इसे ‘विपक्ष को अस्थिर करने की साजिश’ करार दिया है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयक में संविधान के तीन महत्वपूर्ण अनुच्छेदों- अनुच्छेद 75 (प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री), अनुच्छेद 164 (राज्य के मुख्यमंत्री और मंत्री), और अनुच्छेद 239AA (दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रावधान) में बदलाव करने का प्रस्ताव है।
केंद्रीय मंत्रियों और प्रधानमंत्री के लिए:
अनुच्छेद 75 में एक नया क्लॉज 5(ए) जोड़ा जाएगा।
इसके अनुसार, यदि कोई केंद्रीय मंत्री लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहता है और उस पर ऐसा आरोप है, जिसमें पांच साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है, तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर उसे 31वें दिन पद से हटा देंगे।
अगर प्रधानमंत्री 31वें दिन तक यह सलाह नहीं देते हैं, तो भी वह मंत्री अपने आप पद से मुक्त हो जाएगा।
यह नियम प्रधानमंत्री पर भी लागू होगा। अगर प्रधानमंत्री लगातार 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें 31वें दिन इस्तीफा देना होगा। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो वे अपने आप प्रधानमंत्री पद से हट जाएंगे।
राज्य के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के लिए:
इसी तरह के प्रावधान अनुच्छेद 164 और 239AA में भी किए जाएंगे, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर लागू होंगे।
इसका मतलब है कि राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री भी अगर 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं, तो उन्हें भी पद से हटना पड़ेगा।
हालांकि, विधेयक में यह भी स्पष्ट किया गया है कि पद से हटाए गए मंत्री या प्रधानमंत्री रिहाई के बाद दोबारा नियुक्त हो सकते हैं, बशर्ते उन्हें आरोपों से बरी कर दिया जाए।
विधेयक लाने के पीछे सरकार का तर्क
सरकार ने इस विधेयक को लाने के पीछे कई स्पष्ट कारण बताए हैं:
संवैधानिक नैतिकता: आज संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो किसी गंभीर आरोपों में गिरफ्तार मंत्री या प्रधानमंत्री को पद से हटाने की अनुमति दे। यह विधेयक इस कमी को पूरा करेगा।
जनता का विश्वास: जनता द्वारा चुने गए नेता लोगों की आशा और भरोसे का प्रतीक होते हैं। ऐसे में उनका चरित्र और आचरण किसी भी संदेह से परे होना चाहिए। यदि कोई मंत्री गंभीर अपराधों में जेल में है, तो यह जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाता है।
सुशासन सुनिश्चित करना: सरकार का मानना है कि इस कानून से यह सुनिश्चित होगा कि आपराधिक मामलों में फंसे और जेल में रहने वाले लोग सत्ता में न बने रहें, जिससे सरकार और लोकतांत्रिक संस्थाओं की पारदर्शिता और नैतिकता बनी रहेगी।
विपक्ष का कड़ा विरोध
इस विधेयक का विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया है। कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे ‘विपक्ष को अस्थिर करने की साजिश’ बताया। सिंघवी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार मनमाने तरीके से विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां कर रही है और इस तरह के कानून से किसी भी विपक्षी मुख्यमंत्री को सिर्फ गिरफ्तारी के जरिए पद से हटाया जा सकता है, जबकि सत्ता पक्ष के नेताओं को छुआ भी नहीं जाता।
उन्होंने हाल के कुछ मामलों का भी हवाला दिया, जैसे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी, जिन्हें विपक्ष ने राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया था। सिंघवी ने कहा कि ऐसे कानून से सत्ता का दुरुपयोग और बढ़ेगा और यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा।
राजनीतिक टकराव और तेज
यह विधेयक ऐसे समय में आया है जब देश में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया अलायंस’ लगातार केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगा रहा है। इस विधेयक के बाद, संसद में राजनीतिक टकराव और भी तेज होने की संभावना है। जहां सरकार इसे सुशासन और पारदर्शिता की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करने की एक सुनियोजित चाल के रूप में देख रहा है। आने वाले दिनों में यह विधेयक संसद में एक तीखी बहस का केंद्र बनेगा। यह देखना बाकी है कि क्या सरकार विपक्ष के विरोध के बावजूद इस विधेयक को पारित कराने में सफल होती है।

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