
भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में कुछ ही नाम ऐसे हैं जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से सत्ता को चुनौती दी और लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए आजीवन संघर्ष किया। कुलदीप नैयर उन्हीं में से एक थे। 23 अगस्त 2018 को 95 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ, लेकिन उनकी निर्भीक लेखनी, निष्पक्ष दृष्टिकोण और लोकतंत्र के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता आज भी पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उनकी पुण्यतिथि पर, हम उनके असाधारण जीवन और पत्रकारिता के सफर को याद करते हैं, जिन्होंने उन्हें ‘आधुनिक पत्रकारिता का भीष्म पितामह’ का दर्जा दिलाया।
विभाजन की त्रासदी से जन्मी निर्भीकता
कुलदीप नैयर का जन्म 14 अगस्त 1923 को सियालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा वहीं से हासिल की। उन्होंने विभाजन की भयावह त्रासदी को बहुत करीब से देखा, जिसने उनकी सोच को गहराई से प्रभावित किया। शायद यही वजह थी कि बाद में उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच शांति और सद्भाव स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किए। लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के मेडिल स्कूल ऑफ जर्नलिज्म से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उर्दू अखबार ‘अंजाम’ से की। बाद में वे प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो में प्रेस अधिकारी बने और फिर ‘द स्टेट्समैन’ और ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ जैसे प्रमुख अखबारों के संपादक रहे।

आपातकाल के खिलाफ ‘निर्भीक कलम’
कुलदीप नैयर की पत्रकारिता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू उनका निर्भीक और निष्पक्ष रुख था। 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया, तो प्रेस की स्वतंत्रता पर कुठाराघात हुआ। उस समय, कुलदीप नैयर ने बिना किसी डर के इसका कड़ा विरोध किया। उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से सरकार की नीतियों की आलोचना की, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उनकी यह गिरफ्तारी प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उनके संघर्ष का एक प्रतीक बन गई। उन्होंने ‘द जजमेंट: इनसाइड स्टोरी ऑफ द इमरजेंसी इन इंडिया’ नामक अपनी पुस्तक में आपातकाल के काले दिनों का विस्तार से वर्णन किया है, जो आज भी उस दौर को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
एक लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता
नैयर सिर्फ एक पत्रकार नहीं थे, बल्कि एक prolific (प्रखर) लेखक भी थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। उनकी आत्मकथा ‘बियॉन्ड द लाइन्स’ में उन्होंने पाकिस्तान में अपने जन्म से लेकर भारत में पत्रकारिता के सफर और राजनीतिक उथल-पुथल का बेबाकी से जिक्र किया है। उनकी अन्य प्रसिद्ध पुस्तकों में ‘विदआउट फियर: लाइफ एंड ट्रायल ऑफ भगत सिंह’, ‘इंडिया हाउस’, और ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’ शामिल हैं। इन किताबों में उन्होंने भारत के इतिहास, राजनीति और समाज पर अपनी गहरी समझ को दर्शाया है।
पत्रकारिता के अलावा, कुलदीप नैयर एक प्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता और शांति के दूत भी थे। उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए लगातार काम किया। 1995 से शुरू हुआ उनका वाघा-अटारी सीमा पर स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मोमबत्ती जलाने का अभियान दोनों देशों के लोगों के बीच शांति और भाईचारे का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया। यह पहल ‘हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई’ का संदेश देती थी और इसने सीमा के दोनों ओर के लोगों को एकजुट करने का काम किया।

राजनयिक और राज्यसभा सदस्य
कुलदीप नैयर का प्रभाव पत्रकारिता और मानवाधिकार से कहीं आगे था। 1990 में उन्हें ब्रिटेन में भारत का उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। 1996 में, वे संयुक्त राष्ट्र के लिए जाने वाले भारत के प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा भी थे। इसके अलावा, 1997 में वे राज्यसभा के लिए मनोनीत किए गए, जहां उन्होंने देश के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी और लोकतंत्र को मजबूत करने में योगदान दिया।
उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 23 नवंबर 2015 को उन्हें पत्रकारिता में आजीवन उपलब्धि के लिए ‘रामनाथ गोयनका स्मृति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। वह ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ के संस्थापक सदस्यों में से भी थे।
कुलदीप नैयर की मृत्यु पर, तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें ‘लोकतंत्र का सच्चा सिपाही’ कहा था। यह विशेषण उनके पूरे जीवन को सटीक रूप से दर्शाता है। उन्होंने अपनी कलम को कभी भी सत्ता के आगे झुकने नहीं दिया और हमेशा सच्चाई और न्याय के लिए खड़े रहे। उनकी विरासत हमें याद दिलाती है कि पत्रकारिता सिर्फ खबर लिखने का पेशा नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, जिसकी जिम्मेदारी सत्ता से सवाल करना और जनता की आवाज उठाना है।

नेता और नेतागिरि से जुड़ी खबरों को लिखने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। गांव-गिरांव की छोटी से छोटी खबर के साथ-साथ देश की बड़ी राजनीतिक खबर पर पैनी नजर रखने का शौक है। अखबार के बाद डिडिटल मीडिया का अनुभव और अधिक रास आ रहा है। यहां लोगों के दर्द के साथ अपने दिल की बात लिखने में मजा आता है। आपके हर सुझाव का हमेशा आकांक्षी…



