
अहमदाबाद की एक सत्र अदालत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो पूर्व सांसदों से जुड़े 29 साल पुराने एक हाई-प्रोफाइल मामले को वापस लेने की अभियोजन पक्ष की याचिका को स्वीकार कर लिया है। इस मामले में, दोनों नेताओं पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एक विधायक की धोती खींचने का आरोप था। यह घटना, जिसे ‘धोतिया कांड’ के नाम से भी जाना जाता है, 1996 में एक राजनीतिक रैली के दौरान हुई थी और इसने उस समय काफी सुर्खियां बटोरी थीं।
राजनीतिक कलह और न्यायिक फैसला
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हेमंग कुमार पंड्या ने गुरुवार को अभियोजन पक्ष की याचिका को मंजूरी दी। जज ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला एक राजनीतिक दल की आंतरिक कलह से जुड़ा था, जिसके कारण इसे वापस लेना उचित था। अदालत ने यह भी नोट किया कि इस मामले के दो मुख्य पात्रों की मृत्यु हो चुकी है। आरोपी भाजपा नेता मंगलदास पटेल का मुकदमे के दौरान ही निधन हो गया था, जिसके चलते उनके खिलाफ मामला समाप्त हो गया था। इसके अलावा, पीड़ित विधायक आत्माराम पटेल की भी 2002 में मुकदमे के दौरान ही मृत्यु हो गई थी।
यह घटना मई 1996 की है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अहमदाबाद में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित कर रहे थे। रैली के बाद, एक घटना में तत्कालीन विधायक आत्माराम पटेल की धोती खींची गई थी। इस घटना ने भाजपा के भीतर की आंतरिक कलह को उजागर किया था और यह पूरे गुजरात में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था।
क्यों महत्वपूर्ण था यह मामला?
यह मामला सिर्फ एक शारीरिक हमले का नहीं था, बल्कि भाजपा के भीतर गुटबाजी का एक बड़ा प्रतीक था। उस समय, गुजरात में भाजपा सत्ता में थी और यह घटना पार्टी के भीतर के तनाव को दर्शाती थी। धोती खींचे जाने की घटना ने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को व्यक्तिगत स्तर पर ला दिया था। हालांकि, समय के साथ-साथ इस मामले की सुनवाई धीमी पड़ गई और आखिरकार दोनों मुख्य पात्रों की मृत्यु के बाद इसे समाप्त कर दिया गया।
अभियोजन पक्ष की यह याचिका और अदालत का इसे स्वीकार करना, भारतीय न्याय प्रणाली में एक दुर्लभ लेकिन महत्वपूर्ण घटना है, जहां राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पुराने मामलों को समाप्त कर दिया जाता है, खासकर जब पीड़ित और आरोपी अब जीवित न हों। इस फैसले से भाजपा के उन दो पूर्व सांसदों को राहत मिली है, जो 29 साल से इस मामले का सामना कर रहे थे। हालांकि, यह घटना आज भी गुजरात की राजनीतिक स्मृति में ‘धोतिया कांड’ के रूप में दर्ज है।

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