
पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा स्कूल के बच्चों से यह कहने पर कि भगवान हनुमान चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति थे, एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) की सांसद एमके कनिमोझी ने इस बयान की कड़ी निंदा करते हुए इसे विज्ञान, तर्क और संवैधानिक मूल्यों का अपमान बताया है।
‘विज्ञान कोई मिथक नहीं है’
कनिमोझी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए लिखा, “एक सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री द्वारा स्कूली बच्चों से यह पूछना कि चांद पर सबसे पहले किसने कदम रखा था और जोर देकर कहना कि वह नील आर्मस्ट्रांग नहीं, बल्कि हनुमान थे, बेहद परेशान करने वाला है।”
उन्होंने आगे लिखा, “विज्ञान कोई मिथक नहीं है।” कनिमोझी का कहना है कि कक्षाओं में युवाओं को इस तरह गुमराह करना ज्ञान, तर्क और हमारे संविधान में निहित वैज्ञानिक सोच का सीधा अपमान है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत का भविष्य जिज्ञासा को पोषित करने में निहित है, न कि तथ्यों को मिथकों से भ्रमित करने में।
कनिमोझी के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर एक बड़ी बहस छिड़ गई है। एक तरफ, कई लोग उनके समर्थन में हैं और उनका मानना है कि शिक्षा को तर्क और वैज्ञानिक सोच पर आधारित होना चाहिए। दूसरी तरफ, कुछ लोग इस मुद्दे को संस्कृति बनाम विज्ञान के चश्मे से देख रहे हैं और अनुराग ठाकुर के बयान का बचाव कर रहे हैं।
अनुराग ठाकुर का बयान और भाजपा का रुख
यह विवाद तब शुरू हुआ जब भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने शनिवार को हिमाचल प्रदेश में एक कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान हनुमान को अंतरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति माना जा सकता है। उन्होंने छात्रों से भारत की समृद्ध परंपराओं से जुड़ने के लिए पाठ्यपुस्तकों से आगे देखने का भी आग्रह किया था। ठाकुर ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर भी लिखा, “पवनसुत हनुमान जी पहले अंतरिक्ष यात्री।”
विवाद के राजनीतिक मायने
यह विवाद सिर्फ एक बयान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके गहरे राजनीतिक मायने हैं। भाजपा लगातार अपने सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है, जबकि विपक्ष इसे विज्ञान विरोधी और देश की प्रगति के लिए हानिकारक बता रहा है। कनिमोझी का यह बयान भाजपा के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के एजेंडे पर एक सीधा हमला है। यह दिखाता है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक इस तरह के बयानों को भुनाने और भाजपा को विज्ञान विरोधी साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या यह विवाद आगामी चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन पाता है।

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