
आध्यात्मिक गुरु स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा संत प्रेमानंद पर की गई विवादास्पद टिप्पणी ने संत समाज में नाराजगी पैदा कर दी है। कई प्रमुख संतों ने इस बयान पर कड़ा ऐतराज जताते हुए इसे सनातन धर्म की एकता के लिए हानिकारक बताया है। संतों का कहना है कि इस तरह की अनावश्यक टिप्पणियां समाज, खासकर युवा पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
‘विद्वत्ता का पैमाना केवल शास्त्रीय ज्ञान नहीं’
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के अनंत श्री विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी चिदंबरानंद सरस्वती ने स्वामी रामभद्राचार्य की टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि रामभद्राचार्य हमेशा विवादास्पद बयान देते रहते हैं, जो उनकी आदत बन गई है। स्वामी चिदंबरानंद ने जोर देकर कहा कि अगर विद्वत्ता का पैमाना केवल श्लोक का अर्थ बताना है, तो सनातन परंपरा में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं ली, फिर भी उन्होंने स्वामी विवेकानंद जैसे महान शिष्य दिए।
उन्होंने बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री का उदाहरण देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की पहचान उसके कार्यों, आचरण और स्वभाव से होती है, न कि केवल शास्त्रीय ज्ञान से। उन्होंने प्रेमानंद के कार्यों की सराहना करते हुए रामभद्राचार्य से ऐसी निरर्थक टिप्पणियों से बचने का अनुरोध किया।
युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव का डर
अखिल भारतीय संत समिति ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी गोपालाचार्य महाराज ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म हमेशा संतों के मार्गदर्शन में फला-फूला है, लेकिन जब एक संत दूसरे संत पर आक्षेप लगाता है, तो यह युवा पीढ़ी के मन में संदेह पैदा करता है।
उन्होंने कहा, “युवा संतों के प्रवचनों से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में बदलाव लाते हैं। यदि संतों के बीच ही विघटन दिखेगा, तो इसका युवाओं पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।” उन्होंने सूरदास और मीराबाई जैसे संतों का उदाहरण देते हुए कहा कि कई महान संतों ने बिना औपचारिक शिक्षा के समाज का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि मीराबाई ने भगवान के प्रति समर्पण से सनातन धर्म को गौरवान्वित किया, फिर भी वह संस्कृत की विद्वान नहीं थीं।
वहीं, आचार्य मधुसूदन महाराज ने स्वामी रामभद्राचार्य की टिप्पणी को “पूरी तरह से निराधार और निंदनीय” बताया।
आरक्षण पर संतों की सहमति
हालांकि, संत समाज ने स्वामी रामभद्राचार्य के आरक्षण संबंधी विचारों का समर्थन किया है। स्वामी गोपालाचार्य ने कहा कि संत समाज का मानना है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए, न कि केवल जातिगत आधार पर। उन्होंने कहा, “जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, चाहे वह किसी भी जाति से हों, उन्हें संसाधन मिलने चाहिए। संपन्न लोगों को केवल जाति के आधार पर आरक्षण देना उचित नहीं है।” इस मुद्दे पर संतों के बीच एक राय दिखाई दी, लेकिन प्रेमानंद पर की गई टिप्पणी ने संत समाज में एक दरार पैदा कर दी है, जिसे भरने में समय लग सकता है। यह देखना होगा कि यह विवाद आगे क्या मोड़ लेता है।

गांव से लेकर देश की राजनीतिक खबरों को हम अलग तरीके से पेश करते हैं। इसमें छोटी बड़ी जानकारी के साथ साथ नेतागिरि के कई स्तर कवर करने की कोशिश की जा रही है। प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक की राजनीतिक खबरें पेश करने की एक अलग तरह की कोशिश है।



