
गंगा के पावन तट पर स्थित कनखल की धरती, जहां अनादिकाल से साधकों की तपस्या और भक्ति की गूंज सुनाई देती है, वहीं एक आधुनिक संत, आनंदमयी मां, की स्मृति आज भी भक्तों के हृदय में अमर है। अपने जीवनकाल में उन्हें भक्ति, करुणा और प्रेम की त्रिवेणी कहा जाता था। उनका जीवन सादगी और आध्यात्मिकता का एक दुर्लभ संगम था, जिसने हजारों लोगों को शांति और मोक्ष का मार्ग दिखाया।
निर्मला सुंदरी से आनंदमयी मां तक का सफर
आनंदमयी मां का जन्म 30 अप्रैल 1896 को तत्कालीन बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के खेउरा गांव में निर्मला सुंदरी के रूप में हुआ था। उनके माता-पिता, मोक्षदा सुंदरी और बिपिन बिहारी भट्टाचार्य, वैष्णव परंपरा के प्रबल भक्त थे। उनके भजनों और धार्मिक माहौल में पली-बढ़ी निर्मला की आत्मा बचपन से ही ईश्वरीय चेतना से ओतप्रोत थी।

मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह रमानी मोहन चक्रवर्ती से हुआ, लेकिन सांसारिक बंधन उनके आध्यात्मिक पथ को नहीं रोक सके। उनके पति ने उनकी अलौकिक शक्तियों को अनुभव किया और उनके प्रथम शिष्य बने। बाद में उन्हें भोलानाथ के नाम से जाना गया। मां ने उन्हें महाकाली का साक्षात्कार कराया और साधना के मार्ग पर प्रेरित किया।
आनंदमयी मां का जीवन पारंपरिक संन्यास का नहीं, बल्कि सहज साधना का प्रतीक था। उनकी शिक्षाओं का सार बहुत ही सरल और गहरा था, जिसमें कहा गया था, “ईश्वर ही एकमात्र प्रिय है, सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर शांति प्राप्त करो।” उनकी साक्षी भाव की साधना और करुणा ने हर वर्ग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया।
आश्रम और महासमाधि
आनंदमयी मां ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में भारत के कई हिस्सों, खासकर उत्तराखंड में, आश्रमों की स्थापना की। कनखल, देहरादून और अल्मोड़ा में उनके आश्रम आज भी शांति और ध्यान के केंद्र हैं। इन्हीं में से एक देहरादून का किशनपुर आश्रम भी है।
27 अगस्त 1982 को, मां आनंदमयी ने देहरादून के किशनपुर आश्रम में अपने स्थूल शरीर का त्याग कर ब्रह्मांड में समाहित हो गईं। उनके पार्थिव शरीर को कनखल के आश्रम में लाया गया और उन्हें वहां महासमाधि दी गई। यह वही स्थान है, जहां आज भी एक वटवृक्ष भक्तों को अपनी छांव में बुलाता है।

महासमाधि मंदिर और विरासत
मां का महासमाधि स्थल ‘मां आनंदमयी महाज्योति पीठम’ के नाम से जाना जाता है, जहां उनकी मूर्ति स्थापित है। 1 मई 1987 को मां का महासमाधि मंदिर पूर्ण हुआ, जिसका प्रबंधन श्री श्री आनंदमयी संघ द्वारा किया जाता है। यह संघ आज भी मां की शिक्षाओं और सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार कर रहा है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित कई बड़ी हस्तियां आनंदमयी मां की भक्त थीं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा आनंद केवल प्रभु की भक्ति और निष्काम कर्म में ही निहित है। मां की शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को शांति, प्रेम और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखा रही हैं।

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