
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन का दौरा करेंगे। इस यात्रा के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात होगी, जिसे दोनों देशों के बीच संबंधों में विश्वास बहाली और उन्हें एक नई दिशा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब 2020 के पूर्वी लद्दाख सीमा तनाव के बाद से दोनों देशों के रिश्ते काफी प्रभावित हुए हैं।
संबंधों का उतार-चढ़ाव भरा इतिहास
भारत और चीन ने 1 अप्रैल 1950 को राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, लेकिन 1962 के सीमा संघर्ष ने इन संबंधों को एक बड़ा झटका दिया। इसके बाद 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चीन यात्रा ने रिश्तों को फिर से पटरी पर लाने की शुरुआत की। 2003 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यात्रा ने सीमा विवाद के समाधान के लिए विशेष प्रतिनिधि प्रणाली का गठन किया, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके बाद 2005 में चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा ने रणनीतिक और सहयोगात्मक साझेदारी को बढ़ावा दिया।
पिछले एक दशक में, दोनों देशों के बीच संबंधों में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। 2014 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा ने एक घनिष्ठ विकासात्मक साझेदारी की नींव रखी, जबकि 2015 में प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा ने इस गति को बनाए रखा। इसके बाद, दोनों नेताओं ने 2018 में वुहान और 2019 में चेन्नई में अनौपचारिक शिखर सम्मेलनों के माध्यम से आपसी विश्वास बढ़ाने का प्रयास किया। हालांकि, 2020 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हुए सैन्य तनाव ने इन प्रयासों को एक बड़ा झटका दिया।
2024 में रूस के कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और जिनपिंग की मुलाकात से संबंधों में कुछ सुधार हुआ है। इसके अलावा, दोनों नेता जी20, ब्रिक्स और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों पर कई बार मिल चुके हैं।
सीमा विवाद और संवाद के प्रयास
सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच लगातार उच्च-स्तरीय बातचीत जारी है। 2003 में स्थापित विशेष प्रतिनिधि प्रणाली के तहत अब तक 24 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। इसके अलावा, परामर्श और समन्वय तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की 27 बैठकें और वरिष्ठ सैन्य कमांडरों की 19 बैठकें हो चुकी हैं। इन वार्ताओं का मुख्य फोकस 2020 से लद्दाख में सैनिकों की वापसी पर रहा है।
हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का दौरा कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री से मुलाकात की, जो दोनों देशों के बीच संवाद बनाए रखने की इच्छा को दर्शाता है। इसके अलावा, जल संसाधन सहयोग के लिए 2006 से विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) भी काम कर रहा है, जिसकी 14 बैठकें हो चुकी हैं।

विश्वास बहाली की चुनौती
प्रधानमंत्री मोदी की यह चीन यात्रा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक औपचारिक एससीओ शिखर सम्मेलन की भागीदारी नहीं है, बल्कि दोनों नेताओं के लिए एक-दूसरे से सीधे संवाद स्थापित करने का एक अवसर है। 2020 के बाद से, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार तो बढ़ा है, लेकिन राजनीतिक और सैन्य स्तर पर विश्वास की कमी साफ दिखती है।
इस यात्रा से उम्मीद है कि दोनों नेता सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक रोडमैप पर चर्चा करेंगे। सीमा पर तनाव कम करना और सैनिकों की वापसी को पूरा करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग, व्यापार घाटे को कम करने और वैश्विक मुद्दों पर साझा रुख अपनाने पर भी बात हो सकती है।
हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती विश्वास की बहाली है। भारत ने हमेशा कहा है कि सीमा पर शांति के बिना सामान्य संबंध संभव नहीं हैं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच की बातचीत से यह पता चलेगा कि क्या वे वास्तव में संबंधों को फिर से पटरी पर लाने के लिए तैयार हैं, या यह सिर्फ एक और औपचारिक मुलाकात बनकर रह जाएगी। अगर दोनों नेता सीमा विवाद के समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने पर सहमत होते हैं, तो यह यात्रा दोनों देशों के लिए एक नया अध्याय खोल सकती है।

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