
झारखंड में एक बार फिर जमीन अधिग्रहण का मुद्दा राजनीतिक घमासान का केंद्र बन गया है। रांची के नगड़ी इलाके में प्रस्तावित नए मेडिकल कॉलेज रिम्स-2 के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर झारखंड सरकार और आदिवासी रैयतों के बीच टकराव की स्थिति बरकरार है। इस बीच, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के कद्दावर नेता चंपई सोरेन ने अपनी ही पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने आगामी 5 से 11 अक्टूबर के बीच रिम्स-2 के लिए चिह्नित जमीन के पास ‘आदिवासी महादरबार’ लगाने का ऐलान किया है, जिसमें पूरे राज्य से हजारों आदिवासियों के जुटने की उम्मीद है।
सियासी टकराव का मूल: उपजाऊ जमीन बनाम सरकार की जिद
पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने झारखंड विधानसभा परिसर में मीडिया से बात करते हुए कहा कि वे इस आंदोलन में पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने कहा कि उनका विरोध अस्पताल निर्माण के खिलाफ नहीं है, बल्कि सरकार की उस नीति के खिलाफ है जिसमें बंजर या लैंड बैंक की जमीन उपलब्ध होने के बावजूद आदिवासियों की उपजाऊ जमीन को जबरन छीना जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि हेमंत सोरेन सरकार, जो खुद आदिवासियों के हक की बात करती है, वही अब किसानों के साथ ऐसा सलूक कर रही है। चंपई सोरेन ने सवाल उठाया कि जब अधिग्रहण की कोई वैधानिक प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है, तो किस आधार पर किसानों को अपनी खेती से रोकने का आदेश जारी किया गया है।
यह टकराव केवल एक जमीन के टुकड़े तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जेएमएम के मूल सिद्धांतों पर एक सवाल है। जेएमएम का गठन और झारखंड राज्य के लिए संघर्ष ही आदिवासियों की जमीन, पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए हुआ था। ऐसे में, पार्टी के एक वरिष्ठ नेता द्वारा अपनी ही सरकार के खिलाफ खड़ा होना एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। यह दर्शाता है कि जेएमएम के भीतर भी एक धड़ा ऐसा है जो मानता है कि सरकार अपने मूल सिद्धांतों से भटक रही है।
‘आदिवासी महादरबार’: सरकार के लिए बड़ी चुनौती
चंपई सोरेन ने ‘आदिवासी महादरबार’ में डेढ़ से दो लाख लोगों के जुटने का दावा किया है। अगर यह भीड़ जुटती है, तो यह हेमंत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी। यह महादरबार न केवल आदिवासियों की नाराजगी को प्रदर्शित करेगा, बल्कि जेएमएम के भीतर के आंतरिक मतभेदों को भी सार्वजनिक करेगा। यह आंदोलन विपक्ष (विशेषकर भाजपा) को भी एक अवसर देगा कि वह सरकार को आदिवासियों के अधिकारों के मुद्दे पर घेरे।
चंपई सोरेन ने सरकार के उन आरोपों का भी तीखा जवाब दिया, जिसमें कहा गया था कि आंदोलन में बाहर से भाड़े के लोग लाए जा रहे हैं। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा, “बाहरी बांग्लादेशियों को वे लोग बसा रहे हैं और हम पर ऐसा आरोप लगा रहे हैं।” यह बयान राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है, जो सीधे तौर पर घुसपैठ और नागरिकता जैसे मुद्दों को उठाता है, जो झारखंड में अक्सर राजनीतिक बहस का हिस्सा रहे हैं।

झारखंड आंदोलन की विरासत और वर्तमान सरकार
चंपई सोरेन ने अपनी बात को ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि अलग झारखंड राज्य बनाने का संघर्ष हमेशा आदिवासी और मूलवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ा गया था। उन्होंने कहा कि आज वही किसान अपनी जमीन बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। यह बयान वर्तमान सरकार की नीतियों की तुलना उस ऐतिहासिक संघर्ष से करता है, जिससे पार्टी की पहचान बनी थी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के टकराव से सत्ताधारी गठबंधन की छवि को नुकसान पहुंच सकता है। अगर आदिवासी रैयत सरकार से नाराज होते हैं, तो यह सीधे तौर पर जेएमएम के जनाधार पर असर डालेगा। चंपई सोरेन के नेतृत्व में यह आंदोलन न केवल जमीन बचाने की लड़ाई है, बल्कि यह जेएमएम के भीतर शक्ति संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि हेमंत सोरेन सरकार इस चुनौती का सामना कैसे करती है और क्या वह किसी समझौते के माध्यम से इस बढ़ते हुए राजनीतिक टकराव को शांत कर पाती है।

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