
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शनिवार को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक कार्यक्रम में लोक हितकारी स्वर्गीय काशीनाथ गोरे को श्रद्धांजलि दी। सिम्स ऑडिटोरियम में आयोजित इस कार्यक्रम में स्वर्गीय गोरे की स्मारिका का विमोचन भी किया गया।
संघ 100 साल तक कैसे पहुंचा, लोगों को जानकारी नहीं
कार्यक्रम की शुरुआत भारत माता की तस्वीर पर पुष्प अर्पित करने के साथ हुई। इसके बाद मोहन भागवत ने स्मारिका का विमोचन किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि आजकल आरएसएस के 100 साल की बात तो होती है, लेकिन यह संगठन यहां तक कैसे पहुंचा, इसकी जानकारी लोगों को नहीं है।
भागवत ने कहा कि स्वयंसेवकों ने अनेक बाधाओं के बावजूद अपने संपर्क को बढ़ाया और संघ को आगे बढ़ाया। उन्होंने शुद्धता, कर्मठता और अनुशासन के साथ लोगों की सेवा करते हुए अपने कुटुंब को बड़ा किया। उन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत को समझाते हुए कहा कि स्वयंसेवक पहले अपने घर से, फिर पड़ोस और उसके बाद पूरे देश को अपना कुटुंब मानता है।
संघ प्रमुख ने काशीनाथ गोरे को एक लोकहितकारी स्वयंसेवक बताते हुए कहा कि उन्होंने हर जगह अपना धर्म निभाया। उन्होंने कहा, “यह जरूरी नहीं कि हर कोई काशीनाथ बन जाए, पर सभी को स्वयंसेवक होना चाहिए।”

डॉ. रमन सिंह ने साझा की पुरानी यादें
इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने भी काशीनाथ गोरे को श्रद्धांजलि दी और उनके साथ की पुरानी यादें साझा कीं। उन्होंने एक दिलचस्प किस्सा सुनाया कि जब वह एक प्रैक्टिसिंग डॉक्टर थे, तब काशीनाथ गोरे उन्हें एक देवार मोहल्ले में ले गए और एक ठेले पर बैठा दिया, जहां चारों ओर सूअर घूम रहे थे।
डॉ. सिंह ने बताया कि वह हर शनिवार वहां जाकर बच्चों और लोगों का इलाज करते थे, जिसके बाद लोग उन्हें ‘शनिचर डॉक्टर’ कहने लगे। उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा कि उस दिन से उनका भाग्य जाग गया। यह किस्सा काशीनाथ गोरे की समाज के गरीब और पिछड़े लोगों के प्रति गहरी निष्ठा को दर्शाता है। यह कार्यक्रम काशीनाथ गोरे के लोकहितकारी कार्यों और मूल्यों को याद करने का एक अवसर था।

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