
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोमवार को तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सदस्य देशों से क्षेत्रीय शांति और समृद्धि के लिए अपने मतभेदों को दरकिनार कर साझा लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। उनके इस बयान को भारत और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद को लेकर चल रहे विवाद और भारत-चीन के बीच सीमा विवाद जैसे प्रमुख मुद्दों को अप्रत्यक्ष रूप से सुलझाने की दिशा में एक राजनयिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
अपने संबोधन में शी जिनपिंग ने एससीओ की ऐतिहासिक उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा कि संगठन अब दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बन चुका है। उन्होंने जोर दिया कि इस प्रगति को बनाए रखने के लिए सदस्य देशों के बीच मजबूत एकता और सहयोग अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि एससीओ की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसके सदस्य एक-दूसरे के साथ कैसे तालमेल बनाते हैं और मिलकर काम करते हैं।
‘मतभेदों को दरकिनार’ करने की अपील का राजनीतिक अर्थ
राष्ट्रपति शी का यह बयान उस समय आया है जब एससीओ के प्रमुख सदस्य देशों – भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय तनाव जारी है। भारत लगातार सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को उठाता रहा है, जबकि चीन के साथ उसके सीमा विवाद भी कायम हैं। ऐसे में शी जिनपिंग का यह कहना कि ‘छोटी-मोटी असहमतियों’ को भुलाकर आपसी सहयोग पर ध्यान देना चाहिए, एक राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। इसका सीधा मकसद इन देशों को यह समझाना है कि क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक विकास जैसे बड़े लक्ष्यों के लिए उन्हें अपने व्यक्तिगत मतभेदों को पीछे रखना होगा, जो कि चीन की ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ जैसी परियोजनाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है।
उन्होंने सदस्य देशों से अपील की कि वे एक-दूसरे की प्रगति में योगदान दें, ताकि सभी को फायदा हो। यह दृष्टिकोण चीन की वैश्विक और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप है, जिसमें वह स्वयं को एक प्रमुख भागीदार और नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रस्तुत करता है।

व्यावहारिक परिणामों पर जोर और चीन की नेतृत्व क्षमता
शी जिनपिंग ने अपने संबोधन में यह भी जोर दिया कि एससीओ को केवल बातचीत तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि व्यावहारिक परिणामों पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि संगठन को उच्च दक्षता के साथ काम करना चाहिए, ताकि इसके फैसले जल्दी लागू हो सकें। यह बयान भी चीन के नेतृत्व में एक निर्णायक और परिणाम-उन्मुख संगठन बनाने की इच्छा को दर्शाता है। यह कदम क्षेत्र में स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने के लिए एक नई रणनीति का हिस्सा है।
सम्मेलन के दौरान उन्होंने सदस्य देशों से आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करने की अपील की। उन्होंने कहा कि आपसी विश्वास और समझ से ही संगठन अपनी वास्तविक पहचान बना सकता है। तियानजिन में हुई यह बैठक क्षेत्रीय सहयोग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का वादा करती है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश, विशेषकर भारत और पाकिस्तान, चीन के इस राजनयिक संदेश को किस रूप में लेते हैं।

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