
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में सोमवार को हुई एक विशेष सुनवाई में पुलिस और सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए गए। हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकार को दो दिनों के भीतर मुंबई में शांति और व्यवस्था बहाल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि आंदोलनकारियों को आजाद मैदान के बाहर से हटा दिया जाना चाहिए, अन्यथा सरकार को कड़े परिणाम भुगतने होंगे।
यह सुनवाई मराठा आरक्षण के खिलाफ दायर एएमवाई फाउंडेशन की याचिका पर की जा रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि पुलिस और प्रशासन कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने मुंबई की बिगड़ती हालत को देखते हुए ‘स्पेशल हॉलिडे कोर्ट’ बुलाने की मांग की थी।
आंदोलन में सियासी हस्तक्षेप के आरोप
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील गुणरत्न सदावर्ते ने आरोप लगाया कि मराठा आंदोलन में राजनीतिक हस्तक्षेप साफ दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) के नेता प्रदर्शनकारियों को ट्रकों से खाना-पानी पहुंचा रहे हैं। सदावर्ते ने यह भी दावा किया कि कई विधायक और सांसद प्रदर्शनकारियों को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण दिए जाने की वकालत कर रहे हैं, जिससे यह मुद्दा पूरी तरह से राजनीतिक हो गया है।
उन्होंने बीड हिंसा और आजाद मैदान में पुलिस द्वारा केस दर्ज न करने पर भी सवाल उठाए। वकील ने मुख्यमंत्री के मराठा न होने के कारण भी इस मुद्दे के उलझने की बात कही। कोर्ट के आसपास प्रदर्शनकारियों की भीड़ देखकर उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आंदोलन ने शहर में अराजकता फैला दी है।
हाईकोर्ट का सख्त रुख: पुलिस की लापरवाही पर सवाल
कोर्ट ने सरकार से सीधा सवाल पूछा कि ‘क्या मुंबई के लोगों की परेशानी तब तक जारी रहेगी जब तक आंदोलनकारियों की मांगें पूरी नहीं हो जाती?’ कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि 5,000 से अधिक लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति नहीं है, फिर भी हजारों की भीड़ सड़कों पर है। इस पर सरकार ने स्वीकार किया कि शनिवार और रविवार को प्रदर्शन की अनुमति नहीं थी, लेकिन फिर भी लोग सड़कों पर घूम रहे थे।

जस्टिस गौतम अंखाड और रवींद्र घूगे की बेंच ने कहा कि 26 अगस्त को जारी आदेश का उल्लंघन हुआ है। कोर्ट ने साफ कहा कि आजाद मैदान को छोड़कर बाकी जगहों से प्रदर्शनकारियों को शाम 4 बजे तक हर हाल में हट जाना होगा। यदि नए प्रदर्शनकारी शहर में घुसने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
‘मांगे पूरी होने तक नहीं हटेंगे’
दूसरी ओर, आंदोलनकारियों ने अपने रुख पर कायम रहने की बात कही। आजाद मैदान में मौजूद एक आंदोलनकारी ने कहा, “हम यहां आरक्षण लेने आए हैं। जब तक आरक्षण नहीं मिलेगा, हम वापस नहीं जाएंगे।” एक अन्य प्रदर्शनकारी ने कहा कि वे मनोज जरांगे पाटिल के समर्थन में आए हैं और जरांगे आरक्षण लेकर ही मुंबई छोड़ेंगे। उन्होंने कहा कि “मराठा और कुणबी एक ही हैं, हमें हमारा आरक्षण चाहिए।”
कोर्ट ने मराठा समुदाय के वकीलों से भी यह स्वीकार करने को कहा कि उनका आंदोलन पर नियंत्रण नहीं है। इस पर वकीलों ने माना कि कुछ असामाजिक तत्व भी शामिल हैं, जिन पर कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने भूख हड़ताल कर रहे प्रदर्शनकारियों की सेहत पर भी चिंता जताई और उन्हें उचित चिकित्सा सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया।

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