
तेलंगाना की राजनीति में दलबदल का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। बीते साल भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए दस विधायकों में से नौ ने रविवार शाम मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी से उनके आवास पर मुलाकात की। यह बैठक ऐसे समय हुई है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष को आदेश दिया है कि तीन महीने के भीतर इन विधायकों के खिलाफ लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला सुनाया जाए।
बैठक का राजनीतिक महत्व
करीब एक घंटे तक चली इस बैठक में कड़ियम श्रीहरी को छोड़कर सभी विधायक मौजूद रहे। सूत्रों के मुताबिक बैठक में स्पीकर गद्दाम प्रसाद कुमार द्वारा जारी नोटिसों पर चर्चा हुई। ये नोटिस सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जारी किए गए थे, जिनमें विधायकों की सदस्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
हालांकि, विधायकों ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि मुख्यमंत्री से मुलाकात का उद्देश्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों को लेकर चर्चा करना था, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे एक रणनीतिक बैठक माना जा रहा है। माना जा रहा है कि इन विधायकों ने संभावित कानूनी चुनौतियों और राजनीतिक भविष्य को लेकर विचार-विमर्श किया।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
31 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी. रामाराव और कुछ अन्य विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिया था कि तीन महीने के भीतर अयोग्यता मामलों का निपटारा किया जाए। अदालत का कहना था कि स्पीकर का दायित्व है कि वे संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत लंबित याचिकाओं पर समयबद्ध तरीके से कार्रवाई करें। यही कारण है कि अब स्पीकर की ओर से नोटिस जारी होने के बाद बीआरएस छोड़ने वाले विधायकों की चिंता बढ़ गई है।
विपक्ष का दबाव
मुख्य विपक्षी दल बीआरएस लगातार मांग कर रहा है कि मार्च 2024 के बाद कांग्रेस में शामिल हुए सभी दस विधायकों को अयोग्य घोषित किया जाए। पार्टी का कहना है कि इन विधायकों ने जनादेश का अपमान किया है और राजनीतिक लाभ के लिए सत्ताधारी दल का दामन थामा है। वहीं, कांग्रेस खेमे का तर्क है कि इन विधायकों ने जनता की भलाई और विकास कार्यों को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया।

विधायक क्या कह रहे हैं
विधायकों का दावा है कि वे अब भी तकनीकी रूप से बीआरएस के ही सदस्य हैं क्योंकि विधानसभा के आधिकारिक रिकॉर्ड में उनके नाम अभी भी बीआरएस से जुड़े हैं। ऐसे में, वे खुद को अयोग्यता के दायरे से बाहर मानते हैं।
फिर भी, नोटिस जारी होने और सुप्रीम कोर्ट की समयसीमा तय करने के बाद वे कानूनी पचड़े से बचने के लिए रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
शामिल विधायक कौन हैं?
कांग्रेस में शामिल होने वाले बीआरएस विधायकों में शामिल हैं:
दानम नागेंद्र (खैरताबाद)
टेल्लम वेंकट राव (भद्राचलम)
कड़ियम श्रीहरी (स्टेशन घनपुर)
पोचरम श्रीनिवास रेड्डी (बंसवाड़ा)
एम. संजय कुमार (जगटियाल)
अरेकापुड़ी गांधी (सेरिलिंगमपल्ली)
टी. प्रकाश गौड़ (राजेंद्रनगर)
बी. कृष्ण मोहन रेड्डी (गडवाल)
जी. महिपाल रेड्डी (पतनचेरु)
काले यादव
इनमें से रविवार की बैठक में श्रीहरी को छोड़ बाकी सभी विधायक मौजूद थे।
कांग्रेस के लिए मजबूती या चुनौती?
इन विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने से पार्टी को विधानसभा में मजबूती जरूर मिली, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह संख्या घट भी सकती है। अगर स्पीकर इन विधायकों को अयोग्य घोषित कर देते हैं, तो कांग्रेस की विधानसभा में संख्या घट जाएगी और पार्टी को राजनीतिक झटका लगेगा।
दूसरी ओर, अगर विधायक अयोग्यता से बच जाते हैं तो यह कांग्रेस के लिए बड़ी राहत होगी और विपक्ष की रणनीति को धक्का लगेगा।
आने वाले दिन अहम
तेलंगाना की राजनीति में आने वाले तीन महीने बेहद अहम माने जा रहे हैं। स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट की तय समयसीमा में फैसला सुनाना ही होगा। ऐसे में, कांग्रेस और बीआरएस दोनों ही अपने-अपने विधायकों और रणनीति को लेकर सक्रिय हो गए हैं।
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के आवास पर हुई इस बैठक ने साफ कर दिया है कि कांग्रेस भी मामले को लेकर सतर्क है और अपने विधायकों को साथ रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है।
तेलंगाना की सियासत फिलहाल दलबदल और अयोग्यता याचिकाओं के मुद्दे पर गर्माई हुई है। एक तरफ बीआरएस अपने खोए विधायकों को लेकर आक्रामक है, वहीं कांग्रेस इन नेताओं के सहारे अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटी है। अब सबकी नजरें विधानसभा अध्यक्ष के फैसले और सुप्रीम कोर्ट की समयसीमा पर टिकी हैं, जो आने वाले समय में राज्य की राजनीतिक तस्वीर तय कर सकती है।

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