
आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहने के बीजू जनता दल (बीजद) के फैसले ने ओडिशा की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय दास बर्मा ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि यह पार्टी अध्यक्ष और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक द्वारा व्यापक विचार-विमर्श के बाद लिया गया है। उन्होंने दावा किया कि इस कदम का उद्देश्य इंडिया गठबंधन और एनडीए दोनों से “समान दूरी” बनाए रखते हुए ओडिशा के हितों को सर्वोपरि रखना है।
दास बर्मा ने कहा कि यह निर्णय ओडिशा के लोगों की भावनाओं को दर्शाता है। उन्होंने जोर देकर कहा, “बीजद ने हमेशा दलगत राजनीति से ऊपर राज्य के हित को प्राथमिकता दी है और यह रुख एक बार फिर उस प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।” उन्होंने कांग्रेस की आलोचनाओं को “निराधार” बताते हुए कहा कि कांग्रेस के पास बीजद के फैसलों पर सवाल उठाने का कोई नैतिक आधार नहीं है, क्योंकि जनता ने उसे लंबे समय पहले ही नकार दिया है।
कांग्रेस ने बीजद पर साधा निशाना
दूसरी ओर, ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) के अध्यक्ष भक्त चरण दास ने बीजद के इस फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने इसे “निराशाजनक” और “प्रत्याशित” बताते हुए कहा कि बीजद एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में स्पष्ट रुख अपनाने में विफल रही है। भक्त चरण दास ने बीजद पर धर्मनिरपेक्षता का दावा करने के बावजूद पर्दे के पीछे से भाजपा का समर्थन करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा कि बीजद के इस रुख से संदेह पैदा होता है कि क्या पार्टी सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दबाव में काम कर रही है। दास ने चेतावनी दी कि अगर बीजद डर से चुप रहती है तो ओडिशा की जनता के सामने उसकी विश्वसनीयता खत्म हो जाएगी। उनका मानना है कि बीजद का यह रवैया राज्य के लोगों के प्रति उसकी जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करता है।
यह मामला दिखाता है कि कैसे राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया एक राजनीतिक फैसला भी क्षेत्रीय राजनीति में गहरे मतभेद पैदा कर सकता है। जहां बीजद इसे ओडिशा के हितों की रक्षा के रूप में पेश कर रही है, वहीं कांग्रेस इसे दबाव में लिया गया फैसला और नैतिक कमजोरी बता रही है।

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