
सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले के बाद आधार कार्ड की भूमिका पर एक नई बहस छिड़ गई है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) मामले में आधार कार्ड को अन्य 11 दस्तावेजों के बराबर एक पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का आदेश दिया। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार केवल निवास का प्रमाण है, नागरिकता का नहीं।
कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर आधार को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा तो फिर किसे माना जाएगा? उन्होंने मीडिया से बात करते हुए पूछा, “जिनके पास जन्म प्रमाण पत्र या उनके पिता और दादा के प्रमाण पत्र नहीं हैं, क्या उन्हें विदेशी करार दे दिया जाएगा?” मसूद के इस बयान ने उन लाखों लोगों की चिंता को सामने ला दिया है, जिनके पास पारंपरिक पहचान प्रमाणों की कमी है।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता योगेंद्र यादव की याचिका पर सुनवाई के दौरान सामने आया। जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा, “हम साफ कर दे रहे हैं कि आधार सिर्फ निवास के प्रमाण के लिए है न कि नागरिकता तय करने के लिए।”

इमरान मसूद ने इस बात को लेकर भी एनडीए सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नागरिकता को लेकर सरकार का रुख स्पष्ट नहीं है और इससे आम लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है, जो सीधे तौर पर देश के नागरिकों से जुड़ा है।
इसी बातचीत के दौरान इमरान मसूद ने उपराष्ट्रपति चुनाव और नेपाल के राजनीतिक हालात पर भी अपनी राय रखी। उपराष्ट्रपति चुनाव पर उन्होंने कहा कि “एनडीए के अंदर पहली बार बौखलाहट, खलबली और बेचैनी साफ दिखाई दे रही है, जो हमारी (विपक्ष की) बड़ी जीत है।” उन्होंने इसे “देश की आत्मा को बचाने के लिए चुनाव” बताया और उम्मीद जताई कि कुछ लोगों की अंतरात्मा जागने से देश की आत्मा बच जाएगी।
नेपाल के हालात पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी देश में दमनकारी रवैया ज्यादा दिन नहीं चलता, जिसके दो ही नतीजे होते हैं – या तो अराजकता बढ़ती है या फिर तख्तापलट हो जाता है।
कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला जहां एक तरफ मतदाता सूची के लिए एक अतिरिक्त विकल्प प्रदान करता है, वहीं इमरान मसूद जैसे नेताओं के सवालों ने आधार और नागरिकता के बीच के संबंध पर एक नई बहस छेड़ दी है।

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