
राजशाही के खात्मे के बाद से नेपाल लगातार राजनीतिक अस्थिरता से जूझता रहा है। लेकिन इस बार हालात केवल अस्थिरता तक सीमित नहीं रहे, बल्कि अराजकता का रूप ले चुके हैं। सोशल मीडिया पर पाबंदी ने इस अराजकता को जन्म दिया। भले ही सरकार ने बाद में यह पाबंदी हटा ली, लेकिन विरोध थमा नहीं। युवाओं का आक्रोश साफ दिखा कि यह केवल डिजिटल प्रतिबंध के खिलाफ नहीं था, बल्कि नेताओं के भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ भी था।
भ्रष्टाचार और इस्तीफे की मांग
विरोध प्रदर्शन में शामिल युवाओं ने सड़कों पर उतरकर अपने नेताओं की जमकर आलोचना की और इस्तीफे की मांग उठाई। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का दमनकारी रवैया इस आग में घी डालने जैसा साबित हुआ। हालात इतने बिगड़े कि उन्हें सत्ता से हटना पड़ा। यह घटनाक्रम नेपाल के राजनीतिक भविष्य पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
बांग्लादेश की याद दिलाता घटनाक्रम
नेपाल की मौजूदा स्थिति कई मायनों में बांग्लादेश के हालात की याद दिलाती है। वहां छात्रों ने आरक्षण नीति के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, जिसने अंततः शेख हसीना सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया। नेपाल में भी छात्रों और युवाओं के आंदोलन ने वही तेवर दिखाए हैं। यह संकेत है कि युवाओं का धैर्य अब जवाब दे रहा है।

ओली की नीतियों से बिगड़े हालात
प्रधानमंत्री ओली इस संकट के लिए दूसरों को दोष नहीं दे सकते। उनकी मनमानी नीतियां और कठोर रवैया ही उन्हें ले डूबा। नेपाल के लिए चुनौती यह है कि आने वाली अंतरिम सरकार किस रूप में गठित होगी और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन अराजकता की राह से कैसे लौटेगा। युवाओं का गुस्सा जायज है, लेकिन यदि यह हिंसा में बदला, तो देश की हालत और बिगड़ेगी। यह चिंता का विषय है कि आक्रोशित युवा अब सेना की अपील भी नहीं सुन रहे।
आर्थिक संकट और जनता की निराशा
कोविड महामारी के बाद से नेपाल गहरे आर्थिक संकट में है। राजनीतिक अस्थिरता ने इसे और गंभीर बना दिया है। जनता को उम्मीद थी कि लोकतंत्र स्थिरता और विकास लाएगा, लेकिन सत्ता के लालच में नेताओं ने मनमाने प्रयोग किए, जिससे लोगों को निराशा ही हाथ लगी।

नई पीढ़ी से उम्मीदें
यह समय है कि नेपाल के नेतृत्व में नई राजनीतिक पीढ़ी आगे आए और पुरानी पीढ़ी की गलतियों से सबक ले। युवाओं का आक्रोश केवल गुस्से में बदलने के बजाय सकारात्मक बदलाव का जरिया बने, तभी नेपाल इस अराजकता से निकल पाएगा।
भारत और चीन की भूमिका
भारत के लिए नेपाल की मौजूदा स्थिति चिंता का विषय है। अस्थिरता और अराजकता के दौर में विदेशी ताकतों, खासकर चीन के हस्तक्षेप की संभावना बढ़ जाती है। भारत को सतर्क रहना होगा कि नेपाल की स्थिति और न बिगड़े और वहां लोकतंत्र मजबूत बने।

नेपाल इस समय अभूतपूर्व संकट से गुजर रहा है। राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक कठिनाइयों के बीच अराजकता का बढ़ना शुभ संकेत नहीं है। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रही, तो न केवल नेपाल बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता प्रभावित हो सकती है। समाधान केवल युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देने और ईमानदार नेतृत्व के उभार में है।

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