
उत्तर प्रदेश समेत देश की राजनीति में लगभग हाशिए पर पहुंच चुकी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक बार फिर सक्रियता की ओर बढ़ रही है। बसपा संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस 9 अक्टूबर को पार्टी अपनी इस नई सक्रियता को जमीन पर उतारने की योजना बना रही है। इस दिन, लंबे समय बाद, बसपा सुप्रीमो मायावती एक बड़ी सार्वजनिक रैली को संबोधित कर अपनी राजनीतिक वापसी का संदेश देंगी।
इस रैली में बसपा के युवा चेहरे आकाश आनंद को भी लॉन्च किया जाएगा। प्रदेशभर से बड़ी संख्या में समर्थकों की भीड़ जुटाकर पार्टी ‘मिशन-2027’ का बिगुल बजाने की तैयारी में है।
बसपा की इन हलचलों से विरोधी दलों में भी बेचैनी बढ़ गई है। खासकर इसलिए, क्योंकि पिछले कुछ सालों से सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहने वाली मायावती, चुनाव न होने के बावजूद लखनऊ में एक विशाल रैली करने जा रही हैं। पार्टी का लक्ष्य इस रैली में पांच लाख की भीड़ जुटाकर सबको चौंकाना है।
जमीनी स्तर पर तैयारियां
रैली की तैयारियां जमीनी स्तर पर चल रही हैं। वार्ड स्तर तक की बैठकें हो चुकी हैं और पूरे पार्टी कैडर को सक्रिय कर दिया गया है। दूर-दराज के क्षेत्रों से समर्थक 8 अक्टूबर से ही लखनऊ के रमाबाई मैदान में पहुंचना शुरू हो जाएंगे।
पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद गिरीश चंद का मानना है कि वर्षों बाद इस तरह की बड़ी रैली हो रही है। उन्होंने बताया कि इस रैली का उद्देश्य सिर्फ दलितों को एकजुट करना ही नहीं, बल्कि सर्वसमाज के समर्थकों को भी इसमें शामिल कराना है।
नए और पुराने चेहरों का मिश्रण
पार्टी के एक आंतरिक सूत्र ने बताया कि मायावती इस रैली के जरिए कई संदेश देना चाहती हैं। सबसे बड़ा संदेश यह है कि वह अभी भी सक्रिय हैं और बसपा को फिर से मजबूत करना चाहती हैं। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अन्य दल दलितों को संविधान और अंबेडकर के नाम पर भ्रमित कर रहे हैं और यह संदेश दे रहे हैं कि बसपा का अस्तित्व अब खत्म हो चुका है।
इसी वजह से, कई पुराने नेताओं को वापस लाया जा रहा है। पार्टी में वापसी करने वाले आकाश आनंद को इस मंच से ‘री-लॉन्च’ किया जा सकता है। आकाश के ससुर और वरिष्ठ नेता अशोक सिद्धार्थ की भी पार्टी में वापसी हो गई है और उन्हें चार राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कुछ अन्य पुराने दिग्गजों की वापसी को लेकर भी चर्चा चल रही है। यह रैली न केवल बसपा की ताकत का प्रदर्शन करेगी, बल्कि यह भी तय करेगी कि पार्टी अपने पुराने जनाधार को फिर से हासिल कर पाती है या नहीं।

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