
भारत निर्वाचन आयोग ने उत्तर प्रदेश में एक बड़ा फैसला लेते हुए 121 पंजीकृत राजनीतिक दलों को अपनी सूची से बाहर कर दिया है। यह कार्रवाई उन दलों के खिलाफ की गई है जिन्होंने 2019 से लगातार छह वर्षों तक किसी भी विधानसभा या लोकसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लिया। इस कदम से इन पार्टियों को मिलने वाली सभी चुनावी और वित्तीय सुविधाएं समाप्त हो जाएंगी।
क्यों हुई यह कार्रवाई?
मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिणवा ने बताया कि इन दलों को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, आयकर अधिनियम 1961 और चुनाव चिह्न (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश 1968 के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित कर दिया गया है। आयोग का यह फैसला उन राजनीतिक दलों के लिए एक कड़ा संदेश है जो केवल कागजों पर मौजूद हैं और चुनावी प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते।
रिणवा ने यह भी जानकारी दी कि हटाए गए दल 30 दिनों के भीतर भारत निर्वाचन आयोग में इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं।
51 जिलों में फैले थे ये दल
यह कार्रवाई उत्तर प्रदेश के 51 जिलों में पंजीकृत दलों पर हुई है। इनमें से सबसे ज्यादा दल लखनऊ, प्रयागराज और जौनपुर से हैं।
लखनऊ: 14 दल
प्रयागराज: 9 दल
जौनपुर: 7 दल
मेरठ: 6 दल
अलीगढ़: 5 दल
आगरा और गोरखपुर: 4-4 दल
अंबेडकरनगर, अयोध्या, बाराबंकी, बरेली, भदोही, एटा, फर्रुखाबाद, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, कौशांबी, सहारनपुर, संभल व शाहजहांपुर: 2-2 दल
इसके अलावा, अमरोहा, औरैया, आजमगढ़, बलिया, बिजनौर, बुलंदशहर, फतेहपुर, फिरोजाबाद, गाजीपुर, मऊ और मीरजापुर जैसे जिलों में भी एक-एक दल इस सूची में शामिल हैं।
इन दलों को होने वाले बड़े नुकसान
चुनाव आयोग की सूची से बाहर होने पर इन राजनीतिक दलों को कई तरह के नुकसान होंगे:
चुनाव चिह्न की मान्यता समाप्त: इन दलों का चुनाव चिह्न अब आरक्षित नहीं रहेगा।
आयकर छूट और दान पर लाभ खत्म: पंजीकृत दलों को मिलने वाली आयकर छूट और दान पर मिलने वाला लाभ अब नहीं मिलेगा, जिससे उनकी फंडिंग पर सीधा असर पड़ेगा।
सरकारी सुविधाएं समाप्त: इन दलों को अब निर्धारित जगहों पर रैली/बैठक करने की अनुमति नहीं मिलेगी, और न ही उन्हें मतदाता सूची की मुफ्त प्रति मिलेगी।
प्रसारण समय समाप्त: आकाशवाणी और दूरदर्शन पर मुफ्त प्रसारण का समय भी उनसे छीन लिया जाएगा।
पंजीकृत दल का दर्जा खत्म: सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सूची से हट जाने पर ये दल एक साधारण पंजीकृत दल भी नहीं माने जाएंगे, जिससे उनकी राजनीतिक पहचान खत्म हो जाएगी।
आयोग का यह कदम राजनीतिक पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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