
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सीट बंटवारे को लेकर हलचल तेज हो गई है। हालांकि अंतिम फैसला अभी बाकी है, लेकिन भाजपा और जनता दल-यूनाइटेड (जदयू) के बीच यह आपसी समझ बन चुकी है कि छोटे सहयोगी दलों को उनकी अपेक्षाओं के बजाय उनकी “वास्तविक क्षमता” के आधार पर ही सीटें दी जाएंगी। इस रणनीति का मकसद छोटे दलों को किंगमेकर बनने से रोकना और चुनाव के बाद एक स्थिर सरकार सुनिश्चित करना है।
छोटे दलों की बड़ी मांगें, लेकिन मिलेगी सीमित हिस्सेदारी
राजग के छोटे घटक दल, जैसे लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के जीतन राम मांझी, और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा, सभी सम्मानजनक हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि उनके पास अपना क्षेत्रीय आधार और जातिगत वोट बैंक है, जिसे नजरअंदाज करने से गठबंधन को नुकसान हो सकता है।
लेकिन, भाजपा और जदयू की शीर्ष लीडरशिप इस बार कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। उनकी साझा रणनीति यह सुनिश्चित करना है कि सीटों का बंटवारा इस तरह हो कि चुनाव के बाद किसी भी छोटे दल के पाला बदलने पर सरकार के बहुमत पर कोई खतरा न आए। यही वजह है कि दोनों बड़े दल अपने पास अधिकतम सीटें रखेंगे, जबकि छोटे दलों को उनकी जमीनी ताकत के हिसाब से ही सीटें मिलेंगी, न कि उनकी आकांक्षाओं के अनुसार।
राजग के शीर्ष सूत्रों के अनुसार, जदयू और भाजपा अपने पास 105 से 107 सीटें रख सकते हैं। बाकी बची सीटें ही सहयोगी दलों में बांटी जाएंगी।

2020 के चुनाव से लिया सबक
राजग इस बार 2020 के विधानसभा चुनाव से मिली सीख को ध्यान में रखकर सतर्कता बरत रहा है। उस चुनाव में राजग ने कुल 243 सीटों में से 125 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया था। हालांकि, तब भी सरकार अल्पमत में आने के कगार पर थी।
भाजपा ने 74 सीटें जीती थीं।
जदयू को 43 सीटें मिली थीं।
सहयोगी दलों हम और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने 4-4 सीटें जीती थीं।
चुनाव नतीजों के बाद, छोटे दलों की वजह से सरकार पर संकट का खतरा मंडरा रहा था। यदि हम या वीआईपी में से कोई एक भी पाला बदल लेता, तो राजग की सरकार अल्पमत में आ सकती थी। उस समय जदयू ने एक बसपा विधायक और एक निर्दलीय विधायक को अपने साथ लाकर संभावित खतरे को टाल दिया था।
इस बार, भाजपा और जदयू दोनों यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि चुनाव के बाद ऐसी स्थिति न आए जहां उन्हें छोटे दलों पर निर्भर रहना पड़े। यही वजह है कि सीट बंटवारे को लेकर दोनों दल बेहद सावधानी से काम कर रहे हैं। इस रणनीति से जहां एक ओर गठबंधन की स्थिरता बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर छोटे दलों के “किंगमेकर” बनने के सपने पूरे होते नहीं दिख रहे हैं।

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