
केंद्र सरकार की नई एकीकृत पेंशन योजना (UPS) को लेकर सरकारी कर्मचारियों में उत्साह का अभाव देखा जा रहा है। सरकार ने कर्मचारियों को 30 सितंबर, 2025 तक यह तय करने का विकल्प दिया है कि वे अप्रैल 2025 से लागू हुई इस नई योजना को अपनाएं या नहीं। हालाँकि, सरकार द्वारा तय की गई अंतिम तिथि नजदीक आने के बावजूद, 23.94 लाख केंद्रीय कर्मचारियों में से केवल 40,000 ने ही UPS का विकल्प चुना है, जो इस योजना के प्रति गहरे अविश्वास को दर्शाता है।
यूपीएस के प्रति कर्मचारियों की निराशा का कारण
यूपीएस को राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) के तहत लाया गया है, जिसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों के लिए वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना था। लेकिन इस योजना में कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जो कर्मचारियों को रास नहीं आ रहे हैं।
- सेवाकाल में वृद्धि:
यूपीएस का सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू यह है कि पूर्ण पेंशन (वेतन का 50%) प्राप्त करने के लिए न्यूनतम सेवाकाल को 20 वर्ष से बढ़ाकर 25 वर्ष कर दिया गया है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगर कोई कर्मचारी 20-22 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्त होता है, तो उसे आनुपातिक (pro-rata) पेंशन ही मिलेगी, जो उसके लिए आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं होगा। यह उन कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से समस्याजनक है, जो निजी कारणों या स्वास्थ्य समस्याओं के कारण जल्दी सेवानिवृत्त होने की योजना बनाते हैं। - स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) पर प्रतिबंध:
इस योजना के तहत, यदि कोई कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेता है, तो उसे पेंशन के लिए 60 वर्ष की आयु तक इंतजार करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, अगर कोई 45 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होता है, तो उसे पेंशन शुरू होने के लिए 15 साल तक इंतजार करना होगा। यह प्रावधान कर्मचारियों के जीवन और करियर निर्णयों पर एक बड़ा अंकुश लगाता है। - संविदा और आरक्षित वर्गों के लिए चुनौती:
आजकल ज्यादातर सरकारी विभागों में संविदा पर भर्तियां हो रही हैं। ऐसे कर्मचारी अधिक उम्र में नियमित होते हैं, जिससे उनके लिए 25 वर्ष की सेवा की शर्त पूरी करना लगभग असंभव हो जाता है। इसी तरह, आरक्षित वर्गों के लिए नौकरियों में आवेदन की आयु सीमा 40 से 45 वर्ष तक है, जिसके कारण ये कर्मचारी भी 25 वर्ष की शर्त को पूरा नहीं कर पाएंगे। इन शर्तों के कारण, यह योजना समाज के बड़े वर्ग के लिए अव्यावहारिक और निराशाजनक साबित हो रही है।

पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और आर्थिक बोझ का मुद्दा
पेंशन को अक्सर आर्थिक बोझ मानकर इस पर बहस होती रही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक अलग दृष्टिकोण पेश किया है। पिछले साल, कोर्ट ने पेंशन के मुद्दे पर अपनी निराशा जाहिर करते हुए कहा था कि हर मामले में कानूनी दृष्टिकोण अपनाना ठीक नहीं है, बल्कि कुछ मामलों में मानवीय रुख भी अपनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि जहाँ कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को 10-15 हजार रुपये की पेंशन मिलती है, वहीं सरकारें मुफ्त की ‘रेवड़ियाँ’ (डीबीटी योजनाओं के तहत) बांट रही हैं।
यह टिप्पणी इस बात को रेखांकित करती है कि पेंशन को आर्थिक बोझ मानने से ज्यादा जरूरी मुफ्त की योजनाओं पर अंकुश लगाना है, जो देश की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रही हैं। इस संदर्भ में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़े भी महत्वपूर्ण हैं। 1 अप्रैल 2014 से 30 सितंबर 2024 तक, भारतीय बैंकों ने 16.61 लाख करोड़ रुपये के ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया है। इस राशि में से केवल 16% की ही वसूली हो पाई है। यह आंकड़ा बताता है कि बैंकों के गैर-वसूली योग्य ऋणों का बोझ पेंशन पर होने वाले खर्च से कहीं ज्यादा है।
वर्तमान में 10 राज्यों (असम, छत्तीसगढ़, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु) में महिलाओं को डीबीटी योजना के तहत सालाना एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि बांटी जा रही है। ये आंकड़े यह सवाल उठाते हैं कि क्या सरकारें वास्तविक आर्थिक बोझ को पहचानने में विफल हो रही हैं और क्यों केवल पेंशन को ही आर्थिक बोझ के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है?

कर्मचारी संगठनों की मांग: पुरानी पेंशन योजना का विकल्प
कर्मचारी संगठनों का कहना है कि अगर सरकार UPS जैसी नई योजना का विकल्प दे सकती है, तो पुरानी पेंशन योजना (OPS) का विकल्प देने में क्या दिक्कत है? उनका तर्क है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, सरकार का कर्तव्य है कि वह उन कर्मचारियों के अभिभावक की भूमिका निभाए, जिन्होंने अपनी योग्यता और कड़ी मेहनत से नौकरी पाने के बाद जीवन का एक बड़ा हिस्सा सरकारी योजनाओं को लागू करने में लगा दिया।
सरकार के लिए यह एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा बन गया है। कर्मचारियों की मांगों और उनके बढ़ते विरोध को अनदेखा करना मुश्किल है। इस स्थिति में, सरकार को न केवल नई योजना को लोकप्रिय बनाने के तरीकों पर विचार करना होगा, बल्कि यह भी सोचना होगा कि क्या पुरानी पेंशन योजना को वापस लाने का विकल्प देना एक बेहतर और अधिक मानवीय कदम होगा। 30 सितंबर की समय-सीमा नजदीक है, और सरकार को इस पर जल्द ही एक स्पष्ट रुख अपनाना पड़ सकता है।

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