
राजनीति में अक्सर विरोधियों के हमलों को अपना हथियार बनाना एक कला है, और यह कला कुछ ही नेताओं में होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अक्सर इस गुण के लिए सराहा जाता है, लेकिन इसकी एक अद्भुत मिसाल पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी थे। उनके लिए, मजाक को भी एक सकारात्मक पहचान में बदलने की क्षमता थी, और यही कारण था कि उनके लाखों अनुयायी उन्हें आदर से ‘पंडित जी’ कहने लगे थे। यह नाम उन्हें उनके साथियों द्वारा मजाक में दिया गया था, जब वे एक सरकारी परीक्षा में धोती, कुर्ता और टोपी पहनकर गए थे, जबकि बाकी परीक्षार्थी पश्चिमी पोशाकों में थे। लेकिन यह नाम उनकी सादगी और भारतीयता का प्रतीक बन गया, और जीवन भर उनसे जुड़ा रहा।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के छोटे से गांव नगला चंद्रभान में हुआ था। दुर्भाग्यवश, सात साल की कम उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया। लेकिन इस त्रासदी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने जीवन के महत्व को समझा और अपना जीवन समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि जीवन का एक-एक पल सार्थक होना चाहिए। उनकी इसी दूरदृष्टि और मेहनत का नतीजा है कि आज भारतीय जनसंघ से निकली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) न केवल देश की, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है।
जनसंघ से भाजपा तक का सफर
भारतीय जनता पार्टी का गठन 6 अप्रैल 1980 को हुआ था, लेकिन इसकी जड़ें भारतीय जनसंघ में हैं, जिसकी स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय जैसे दूरदर्शी नेताओं ने की थी। यह वह समय था जब देश में ‘नेहरूवाद’ का वर्चस्व था और पाकिस्तान-बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहे थे। इन परिस्थितियों में, एक मजबूत राष्ट्रवादी दल की आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई।
जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कश्मीर जेल में रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई, तो पार्टी को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी युवा दीनदयाल उपाध्याय के कंधों पर आ गई। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपने नेतृत्व में पार्टी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1967 में, उनके नेतृत्व में भारतीय जनसंघ ने पहली बार भारतीय राजनीति में कांग्रेस के एकाधिकार को तोड़ते हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की।

आगे चलकर, जनसंघ का विलय जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर बनी ‘जनता पार्टी’ में हो गया। 1 मई 1977 को करीब 5000 प्रतिनिधियों ने एक अधिवेशन में जनसंघ के जनता पार्टी में विलय का निर्णय लिया। हालांकि, कुछ समय बाद इसी जनता पार्टी से अलग होकर 6 अप्रैल 1980 को एक नए संगठन ‘भारतीय जनता पार्टी’ का उदय हुआ। यह वही भाजपा है जो आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की वैचारिक क्रांति का सच्चा प्रतीक बन गई है।
‘एकात्म मानव दर्शन’ और ‘अंत्योदय’ की विरासत
आज भी भाजपा के सिद्धांतों में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। पार्टी ने उनके द्वारा प्रतिपादित ‘एकात्म मानव दर्शन’ को अपना वैचारिक दर्शन बनाया है। यह दर्शन मानव जीवन के सभी पहलुओं—शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक—के समन्वय पर जोर देता है। इसके साथ ही, भाजपा अंत्योदय, सुशासन, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, विकास और सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान देती है।

इन सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण ‘अंत्योदय’ है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘समाज की अंतिम पंक्ति के व्यक्ति का उदय’। यह विचार गरीबों, पिछड़ों और वंचितों को समाज के बाकी वर्गों के बराबर लाने की बात करता है। दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े व्यक्ति की स्थिति से किया जाना चाहिए, न कि समाज के शीर्ष पर बैठे लोगों से। उन्होंने कहा था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य आम आदमी का कल्याण होना चाहिए।
भाजपा ने ‘पंच निष्ठा’ यानी पांच सिद्धांतों के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है: राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय अखंडता, लोकतंत्र, सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता (सर्वधर्म समभाव), गांधीवादी समाजवाद, और मूल्य आधारित राजनीति। ये सिद्धांत पार्टी की सोच और कार्यप्रणाली का आधार हैं।

दीनदयाल की विरासत और भविष्य की दिशा
पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय राजनीति के एक ऐसे प्रकाशमान सूर्य थे, जिन्होंने समतामूलक और राष्ट्रवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया। सिर्फ 52 साल की उम्र में 11 फरवरी 1968 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनका वैचारिक योगदान आज भी प्रासंगिक है। उनकी दूरदृष्टि ने एक ऐसी पार्टी की नींव रखी जो आज राष्ट्र की सेवा में पूरी तरह समर्पित है।
दीनदयाल उपाध्याय की विरासत हमें यह सिखाती है कि राजनीति सिर्फ सत्ता हासिल करने का साधन नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र और समाज के उत्थान का एक सशक्त माध्यम है। उनकी विचारधारा ने भाजपा को एक ऐसी पार्टी बनाया है जो सिर्फ चुनाव जीतने पर नहीं, बल्कि समाज के सबसे गरीब और कमजोर वर्ग के कल्याण पर ध्यान केंद्रित करती है। उनकी ‘अंत्योदय’ की सोच ने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व को कल्याण का मार्ग दिखाया है।
आज जब भारत दुनिया में एक मजबूत शक्ति के रूप में उभर रहा है, पंडित दीनदयाल उपाध्याय की विचारधारा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उनकी सोच हमें याद दिलाती है कि सच्चा विकास वही है जो हर व्यक्ति तक पहुंचे, और सच्चा राष्ट्रवाद वही है जो सभी को साथ लेकर चले।

नेता और नेतागिरि से जुड़ी खबरों को लिखने का एक दशक से अधिक का अनुभव है। गांव-गिरांव की छोटी से छोटी खबर के साथ-साथ देश की बड़ी राजनीतिक खबर पर पैनी नजर रखने का शौक है। अखबार के बाद डिडिटल मीडिया का अनुभव और अधिक रास आ रहा है। यहां लोगों के दर्द के साथ अपने दिल की बात लिखने में मजा आता है। आपके हर सुझाव का हमेशा आकांक्षी…



