
पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को समय से पहले पूरा करने के बाद, भारत अब इथेनॉल के सरप्लस उत्पादन का लाभ उठाने के लिए इसके निर्यात पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस कदम को ‘भारत के भविष्योन्मुखी विकास’ का समय बताया। उन्होंने कहा कि देश को आयात पर निर्भरता कम करनी होगी और निर्यात को बढ़ाना होगा।
इथेनॉल उत्पादन में भारत की बढ़ती ताकत
गडकरी ने बुधवार को एक कार्यक्रम में बताया कि 30 जून तक भारत की इथेनॉल उत्पादन क्षमता 1,822 करोड़ लीटर सालाना तक पहुंच गई है। यह उपलब्धि ‘इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (ईबीपी)’ के तहत हासिल की गई है, जिसका उद्देश्य 2025-26 तक 20 फीसदी मिश्रण का लक्ष्य प्राप्त करना था। वर्तमान इथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) में 31 जुलाई तक औसतन 19.05 फीसदी इथेनॉल मिश्रण हासिल किया जा चुका है।
उन्होंने कहा कि इथेनॉल के क्षेत्र में ब्राजील एक अग्रणी देश रहा है, लेकिन भारत भी तेजी से अपनी क्षमता का विस्तार कर रहा है। गडकरी ने मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन की सफलता का उल्लेख करते हुए बताया कि इससे किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार की इथेनॉल नीतियों के कारण किसान अब सालाना ₹45,000 करोड़ ज्यादा कमा रहे हैं। यह आंकड़ा इस बात का प्रमाण है कि यह नीति न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति के लिए भी फायदेमंद साबित हो रही है।
दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल का निर्यात
केंद्र सरकार ने अब दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल के निर्यात के लिए भी नीतिगत शर्तें अधिसूचित की हैं। दूसरी पीढ़ी का इथेनॉल खोई, लकड़ी के कचरे और औद्योगिक कचरे जैसी सामग्री से बनता है। इसका निर्यात ईंधन और गैर-ईंधन दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। यह कदम भारत को स्वच्छ ऊर्जा के वैश्विक बाजार में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेगा।
प्रदूषण और पराली जलाने की समस्या का समाधान
गडकरी ने कहा कि इथेनॉल मिश्रण में भारत की प्रगति से पर्यावरण को भी लाभ मिल रहा है। उन्होंने चावल के भूसे को इथेनॉल और बायो सीएनजी में बदलने की पहल का जिक्र किया, जिससे पराली जलाने की समस्या और दिल्ली में प्रदूषण से निपटने में मदद मिलेगी। इस योजना के तहत 500 संयंत्रों के विकास के साथ, चावल का भूसा अब कचरा नहीं, बल्कि ऊर्जा का एक मूल्यवान स्रोत बन जाएगा। यह एक ऐसा समाधान है जो पर्यावरण और किसानों दोनों के लिए फायदेमंद है।
फ्लेक्स ईंधन और वैकल्पिक ऊर्जा का भविष्य
गडकरी ने बताया कि टोयोटा, टाटा, महिंद्रा, सुजुकी और हुंडई जैसी प्रमुख वाहन निर्माता कंपनियां अब फ्लेक्स फ्यूल तकनीक को अपना रही हैं, जो इथेनॉल और पेट्रोल दोनों पर चल सकती है। इसके अलावा, ट्रैक्टर और निर्माण उपकरण निर्माता भी बायोफ्यूल और हाइड्रोजन जैसे वैकल्पिक ईंधनों की ओर रुख कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हरित हाइड्रोजन और टिकाऊ विमानन ईंधन जैसे क्षेत्रों पर पायलट प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इन सभी प्रयासों का दोहरा उद्देश्य है: प्रदूषण को कम करना और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करना। भारत सालाना ₹22 लाख करोड़ मूल्य के जीवाश्म ईंधन का आयात करता है। गडकरी ने कहा कि अब समय आ गया है कि दुनिया और भारत इथेनॉल, बायो सीएनजी और टिकाऊ विमानन ईंधन जैसे विकल्पों को अपनाए। यह कदम न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद होगा, बल्कि देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी बनाएगा।
कुल मिलाकर, सरकार की इथेनॉल नीति एक दूरदर्शी कदम साबित हो रही है, जो किसानों की आय बढ़ा रही है, पर्यावरण को स्वच्छ बना रही है और देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रही है। अब निर्यात पर जोर देकर भारत इस क्षेत्र में एक वैश्विक नेता बनने की राह पर है।

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