
पिछले कुछ दशकों से शिक्षा जगत में एक विचार लगातार घूम रहा है कि ‘टेक्नोलॉजी पढ़ा सकती है।’ यह विचार अब ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संचालित प्रौद्योगिकी शिक्षक का काम कर सकती है’ के रूप में सामने आया है। लेकिन, शिक्षाविदों और विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक खतरनाक अंधविश्वास है, जिसका मुकाबला तुरंत और पूरी ताकत से किया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि भले ही तकनीक शिक्षा में मदद कर सकती है, लेकिन वह कभी भी शिक्षकों की जगह नहीं ले सकती।
दशकों पुराना भ्रम: ‘OLPC’ से ‘AI’ तक
यह कोई नई बात नहीं है कि टेक्नोलॉजी को शिक्षा के क्षेत्र में रामबाण इलाज माना जाए। दशकों पहले, ‘हर बच्चे को लैपटॉप’ (OLPC) जैसी पहल शुरू की गई थी। उस समय भी यह दावा किया गया था कि अगर हर बच्चे के पास एक कंप्यूटर हो, तो हमें शिक्षकों और स्कूलों की जरूरत नहीं रह जाएगी। दुनिया भर में इसके कई रूप दिखे, लेकिन यह धारणा पूरी तरह से गलत साबित हुई।
अब यही अंधविश्वास AI के रूप में वापस आया है। कुछ लोग मानते हैं कि AI से संचालित टेक्नोलॉजी एक शिक्षक की भूमिका निभा सकती है। यह धारणा दो रूपों में सामने आती है:
आपको शिक्षक की आवश्यकता नहीं है, बस हर छात्र को एक कंप्यूटर देना होगा जो उसे पढ़ाएगा।

आपको एक शिक्षक की जरूरत तो है, लेकिन वह सिर्फ एक मशीन की तरह काम करेगा, जैसे रेस्तरां में खाना इधर-उधर ले जाने वाली मशीन।
ये दोनों ही धारणाएँ शिक्षा के मूल सिद्धांत के खिलाफ हैं। शिक्षा के केंद्र में हमेशा शिक्षक और छात्र के बीच एक आत्मीय संबंध होता है। यह रिश्ता किसी भी तकनीक से नहीं बनाया जा सकता।
भ्रम के पीछे के कारक
आखिर यह अंधविश्वास बार-बार क्यों लौटता है? इसके पीछे कुछ प्रमुख कारक हैं:
पैसा: तकनीकी क्षेत्र के लोग आमतौर पर बहुत पैसा कमाते हैं और वे इस पैसे का इस्तेमाल अपने विचारों को बढ़ावा देने के लिए करते हैं। वे पुराने, मृत विचारों को भी एक खतरनाक अंधविश्वासी (ज़ोंबी) विचार में बदलकर और अधिक धन कमाने की कोशिश करते हैं।
गलत सामाजिक धारणा: हमारे समाज की एक दोषपूर्ण संरचना है, जो मानती है कि तकनीक हमेशा बेहतर होती है। जो भी इस पर संदेह करता है, उसे ‘दकियानूस’ या ‘विकास विरोधी’ करार दे दिया जाता है।
समाधानवाद (Solutionism): यह एक ऐसी मानसिकता है जो हर समस्या का तकनीकी समाधान खोजने की कोशिश करती है। यह मानती है कि हर मानवीय चुनौती को सिर्फ तकनीक के इस्तेमाल से हल किया जा सकता है।
ये तीनों कारक मिलकर एक ऐसी तिकड़ी बनाते हैं जो इस अंधविश्वास को और भी मजबूत करती है कि ‘प्रौद्योगिकी शिक्षक बन सकती है।’

AI से खतरा और समाधान
यह नवीनतम AI संबंधी अंधविश्वास बेहद हानिकारक है, क्योंकि यह हमारे ध्यान को असली चुनौतियों से भटकाता है। यह शिक्षकों और छात्रों की सोचने की क्षमता को ही नष्ट कर देगा, जिससे शिक्षा का मूल उद्देश्य खत्म हो जाएगा। यह सच है कि प्रौद्योगिकी शिक्षा में एक मददगार उपकरण है, लेकिन वह कभी भी शिक्षकों की जगह नहीं ले सकती।
इस खतरनाक विचार का तत्काल और पूरी ताकत से मुकाबला करना होगा। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस बार हमारी प्रतिक्रिया तेज होगी, क्योंकि AI के मामले में धन और भ्रम का संगम कहीं अधिक स्पष्ट है। तकनीकी क्षेत्र में एक बड़ा समूह भी इस खतरे को पहचान रहा है और इस अंधविश्वास से लड़ने को तैयार है।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षक की भूमिका अद्वितीय है। शिक्षक न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि वे छात्रों में सोचने की क्षमता, आलोचनात्मक दृष्टिकोण और मानवीय मूल्यों का विकास करते हैं, जो एक मशीन कभी नहीं कर सकती। हमें प्रौद्योगिकी का उपयोग एक साधन के रूप में करना चाहिए, न कि एक विकल्प के रूप में। इस बार हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि AI की क्षमता और भयावहता को कम किया जा सके ताकि यह शिक्षा के लिए एक खतरा न बने।

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