
भारत में सोने की कीमतों में बीते छह महीनों से लगातार तेजी देखी जा रही है। खासकर 19 से 23 सितंबर के बीच जिस प्रकार से स्वर्ण के भाव में उछाल आया, उसने आम उपभोक्ताओं, विशेषकर मध्यवर्ग को चिंता में डाल दिया है। जिस देश में लगभग 90 प्रतिशत लोगों की वार्षिक आय चार लाख रुपये से अधिक नहीं है, वहां प्रति दस ग्राम सोने की कीमत एक लाख रुपये के पार पहुंचना एक गंभीर आर्थिक संकेत है।
संस्कारों से जुड़ी जरूरत, लेकिन जेब पर भारी
भारतीय संस्कृति में सोना केवल एक धातु नहीं, बल्कि परंपरा, सुरक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है। विवाह, त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान और पारिवारिक आयोजनों में इसकी भूमिका अहम होती है। ऐसे में इसकी कीमतों में लगातार बढ़ोतरी आम लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही है। त्योहारी सीजन में स्वर्ण की मांग बढ़ जाती है, और दिवाली से लेकर शादी के मौसम तक इसकी खरीदारी चरम पर होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस अवधि में कीमतों में और तेजी आ सकती है।
बाजार में रिकॉर्ड उछाल
वर्तमान में 24 कैरेट के 10 ग्राम सोने की कीमत ₹1,15,000 से अधिक है, जबकि 22 कैरेट के सोने का भाव ₹1,05,000 प्रति दस ग्राम के पार पहुंच चुका है। यह स्थिति दर्शाती है कि स्वर्ण की कीमतें अब ₹1 लाख के स्तर को पार कर स्थिर नहीं, बल्कि निरंतर चढ़ रही हैं। 19 से 23 सितंबर के बीच 24 कैरेट के 100 ग्राम सोने की कीमत में ₹45,200 की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो सर्राफा बाजार के इतिहास में एक उल्लेखनीय घटना है।

विशेषज्ञों की राय: अभी न बेचें सोना
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अभी सोना बेचने का समय नहीं है। कीमतों में और बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है। केवल आम लोग ही नहीं, बल्कि कई देशों के केंद्रीय बैंक भी सोना खरीदने में जुटे हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि वैश्विक स्तर पर भी स्वर्ण को सुरक्षित निवेश माना जा रहा है। ऐसे में जिनके पास सोना है, उन्हें सलाह दी जा रही है कि वे जल्दबाजी में इसे न बेचें।
वैश्विक अनिश्चितता और स्वर्ण की चमक
दुनिया में जब भी राजनीतिक या आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है, तो स्वर्ण की कीमतों में उछाल आता है। युद्ध, मंदी, शेयर बाजार की गिरावट और रियल एस्टेट में ठहराव जैसी स्थितियों में निवेशक स्वर्ण को सुरक्षित विकल्प मानते हैं। वर्तमान में अमेरिका की आर्थिक नीतियों और वैश्विक तनावों का असर भी स्वर्ण बाजार पर पड़ रहा है। यही कारण है कि कीमतों में स्थिरता नहीं आ रही।
अर्थव्यवस्था की मजबूती ही समाधान
स्वर्ण में निवेश की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए जरूरी है कि देश की अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को मजबूत किया जाए। जब लोगों को अन्य क्षेत्रों में बेहतर रिटर्न और स्थिरता मिलेगी, तो स्वर्ण की ओर उनका रुझान कम होगा। इसके लिए कंपनियों और कॉर्पोरेट प्रबंधकों को धन के कुशल प्रबंधन की दिशा में काम करना होगा।

इतिहास से सीखने की जरूरत
अगर स्वर्ण के मूल्य इतिहास पर नजर डालें, तो यह स्पष्ट होता है कि इसकी कीमतों में समय के साथ भारी बदलाव आया है। सौ साल पहले सोने का भाव मात्र ₹19 था। 1960 से 1980 के बीच यह ₹111 से बढ़कर ₹1300 तक पहुंचा। 2015 में यह ₹25,000 से नीचे था, और अब ₹1 लाख के पार जा चुका है। यह दर्शाता है कि स्वर्ण की कीमतें समय के साथ कई गुना बढ़ी हैं।
निवेशकों के लिए संतुलन जरूरी
वर्तमान परिस्थितियों में निवेशकों को संतुलन बनाकर चलने की आवश्यकता है। स्वर्ण की कीमतों में अनिश्चितता बनी रहेगी, लेकिन जल्दबाजी में निर्णय लेने से बचना चाहिए। दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाकर ही बेहतर लाभ संभव है।

स्वर्ण की बढ़ती कीमतें जहां निवेशकों के लिए अवसर हैं, वहीं आम उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय भी हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है कि अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से स्थिर और सशक्त बनाया जाए, ताकि स्वर्ण की चमक केवल संकट का संकेत न बने, बल्कि संतुलित विकास का हिस्सा भी हो।

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