
लद्दाख के चर्चित पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। केंद्र सरकार ने उनकी संस्था स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL) का विदेशी फंडिंग प्राप्त करने का एफसीआरए लाइसेंस गुरुवार को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया। गृह मंत्रालय ने यह कदम संस्था के खातों में पाई गई कथित वित्तीय विसंगतियों के आधार पर उठाया है, जिसमें स्वीडन से प्राप्त फंडिंग भी शामिल है। मंत्रालय ने इसे राष्ट्रीय हित के विरुद्ध पाया है।
दूसरी संस्था पर भी जांच की आंच
सिर्फ SECMOL ही नहीं, वांगचुक की दूसरी संस्था हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स लद्दाख (HIAL) भी जांच के घेरे में आ गई है। सीबीआई ने इस संस्था में विदेशी वित्तीय लेन-देन में अनियमितता की जांच शुरू कर दी है। इसके साथ ही सुरक्षा एजेंसियां वांगचुक की इस वर्ष की गई पाकिस्तान यात्रा की भी पड़ताल कर रही हैं। इन सभी मामलों को लेकर वांगचुक ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि यदि उन्हें गिरफ्तार किया गया, तो यह उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से कहीं बड़ी समस्याएं खड़ी कर देगा।

लेह हिंसा में भूमिका पर सवाल
लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और उसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर बीते पांच वर्षों से आंदोलन चल रहा है। इसी क्रम में 10 सितंबर से लेह में सोनम वांगचुक के नेतृत्व में अनशन शुरू हुआ था, जो 25 सितंबर को हिंसा में बदल गया। इस हिंसा में चार लोगों की मौत और 39 घायल हुए। इसके बाद वांगचुक ने अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी और अपने गांव लौट गए। पुलिस और अन्य एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर गृह मंत्रालय ने इस हिंसा के लिए वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया है।
राजनीतिक और प्रशासनिक पृष्ठभूमि
एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, केंद्र सरकार की हाई पावर्ड कमेटी स्थानीय संगठनों के साथ बातचीत कर रही थी और समाधान की दिशा में प्रयास जारी थे। वांगचुक शुरू से केंद्र की नीतियों के आलोचक रहे हैं, लेकिन उन्होंने खुद को आंदोलन से अलग रखा था। हाल ही में जब उन्होंने सक्रिय भूमिका निभानी शुरू की, तब से हालात तेजी से बदले। उनकी संस्था HIAL को आवंटित जमीन वापस लिए जाने और विदेशी चंदा प्राप्त करने के मामलों की जांच शुरू होते ही वांगचुक का रुख और अधिक आक्रामक हो गया।

सामाजिक कार्यकर्ता से विवाद के केंद्र तक
सोनम वांगचुक को अब तक एक शांतिप्रिय और पर्यावरण के प्रति समर्पित कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता रहा है। उन्होंने शिक्षा और नवाचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए हैं, लेकिन हालिया घटनाओं ने उनकी छवि को विवादों के घेरे में ला दिया है। एफसीआरए लाइसेंस रद्द होने और सीबीआई जांच शुरू होने के बाद उनके समर्थकों में चिंता की लहर है, वहीं प्रशासनिक हलकों में सख्ती के संकेत मिल रहे हैं।
वांगचुक की चेतावनी और उनके खिलाफ चल रही जांचों ने लद्दाख की राजनीति को एक नए मोड़ पर ला दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में केंद्र सरकार इस मामले को कैसे संभालती है और वांगचुक की भूमिका को लेकर क्या रुख अपनाती है। फिलहाल, लद्दाख में हालात संवेदनशील बने हुए हैं और प्रशासनिक निगरानी बढ़ा दी गई है।

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