
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 100 वर्ष पूरे होने पर उसकी ‘अद्भुत, अभूतपूर्व और प्रेरणादायक’ यात्रा की सराहना की है। प्रधानमंत्री ने कहा कि विजयादशमी के पावन अवसर पर स्थापित हुए आरएसएस के स्वयंसेवकों के हर प्रयास में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना सदैव सर्वोपरि रही है।
‘बिना थके, बिना रुके’ राष्ट्र सेवा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आगामी दिनों में हम विजयादशमी मनाने वाले हैं, और इस बार यह पर्व एक विशेष कारण से खास है, क्योंकि इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। उन्होंने संघ की एक शताब्दी की यात्रा को अभूतपूर्व बताते हुए कहा कि आरएसएस 100 साल से ‘बिना थके, बिना रुके’ राष्ट्र सेवा के कार्य में लगा हुआ है।
पीएम मोदी ने कहा कि देश में कहीं भी प्राकृतिक आपदा आती है, तो आरएसएस के स्वयंसेवक सबसे पहले वहाँ पहुँच जाते हैं। उन्होंने इस सेवा भाव का श्रेय संघ की मूलभूत भावना को देते हुए कहा, “लाखों लाख स्वयंसेवकों के जीवन के हर कर्म, हर प्रयास में राष्ट्र प्रथम की यह भावना हमेशा सर्वोपरि रहती है।”
वैचारिक गुलामी से आजादी का संकल्प
प्रधानमंत्री ने संघ की स्थापना के ऐतिहासिक संदर्भ पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 100 साल पहले जब संघ की स्थापना हुई थी, तब देश सदियों की गुलामी की जंजीरों में बंधा हुआ था। इस गुलामी ने देश के स्वाभिमान और आत्मविश्वास को गहरी चोट पहुँचाई थी और प्राचीन सभ्यता के सामने पहचान का संकट खड़ा कर दिया था।
पीएम मोदी ने कहा कि उस समय देश की आजादी के साथ-साथ यह भी महत्वपूर्ण था कि देश वैचारिक गुलामी से भी आजाद हो।

हेडगेवार और गुरु जी को किया याद
प्रधानमंत्री मोदी ने संघ संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को याद किया। उन्होंने कहा कि हेडगेवार जी ने इस विषय में गहन मंथन किया और इसी भगीरथ कार्य के लिए उन्होंने 1925 में विजयादशमी के पावन अवसर पर ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ की स्थापना की।
पीएम मोदी ने हेडगेवार जी के बाद राष्ट्र सेवा के इस महायज्ञ को आगे बढ़ाने वाले परम पूज्य गुरु जी (माधव सदाशिव गोलवरकर) को भी याद किया। उन्होंने गुरु जी के प्रेरणादायक वाक्य को उद्धृत किया:
“इदं राष्ट्राय इदं न मम” (यह मेरा नहीं है, यह राष्ट्र का है।)
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरु जी गोलवरकर के इस वाक्य ने लाखों स्वयंसेवकों को स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए समर्पण का भाव रखने की प्रेरणा दी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि त्याग और सेवा की भावना और अनुशासन की सीख ही संघ की सच्ची ताकत है। आरएसएस का यह शताब्दी वर्ष राष्ट्र सेवा और समर्पण के एक नए संकल्प के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

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