
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ के संकल्प ने देश के सुदूर गांवों तक एक मूक क्रांति का सूत्रपात किया है। सरकार को तकनीक-आधारित, पारदर्शी और नागरिक-केंद्रित बनाने के इस दूरदर्शी अभियान का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है ‘डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम’ (DILRMP)। 2016 में शुरू हुआ यह कार्यक्रम आज भारत के भूमि प्रबंधन में अभूतपूर्व परिवर्तन ला रहा है, जिसने न केवल भूमि विवादों को कम किया है बल्कि ग्रामीण जनता को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाया है। हिमाचल प्रदेश के ऊंचे-नीचे पहाड़ों से लेकर छत्तीसगढ़ के मैदानी गांवों तक, डिजिटल भूमि अभिलेखों ने आम नागरिक के जीवन में नया आत्मविश्वास भर दिया है।
पारदर्शी और तकनीक-आधारित व्यवस्था
DILRMP ने भूमि प्रशासन के पुराने, उलझे हुए तंत्र को पूरी तरह से बदल दिया है। पिछले कुछ वर्षों में, उप-पंजीयक कार्यालयों का पूरी तरह से डिजिटलीकरण हो चुका है और उन्हें राजस्व तहसीलों से जोड़ा गया है। पुराने, धूल भरे रिकॉर्ड-कक्ष अब सुरक्षित डिजिटल अभिलेखागार बन चुके हैं। सर्वर आधारित इस नई व्यवस्था और डाटा सेंटर के कारण नागरिकों के समय की भारी बचत हुई है और सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता मजबूत हुई है।
अधिकारियों को जीआईएस मैपिंग और ऑनलाइन सत्यापन जैसी आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षित किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में भी भूमि के स्वामित्व और उनके लेन-देन की जानकारी अब उंगलियों पर ऑनलाइन उपलब्ध है। जमीन अब सिर्फ भौतिक संपत्ति नहीं है, बल्कि यह आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक गरिमा का प्रतीक बन चुकी है।

बदलता ग्रामीण भारत: डिजिटल आंकड़ों की जुबानी
यह क्रांति कितनी गहरी है, यह सरकारी आंकड़ों से स्पष्ट होता है:
देश के लगभग 99 प्रतिशत गांवों के भूमि रिकॉर्ड डिजिटल हो चुके हैं।
97 प्रतिशत से अधिक सिजरे (ग्राम मानचित्र) ऑनलाइन हैं।
84 प्रतिशत गांवों में ‘रिकॉर्ड ऑफ राइट्स’ (ROR) और नक्शों का आपस में एकीकरण हो चुका है।
देश के 96 प्रतिशत उप-पंजीयक कार्यालय अब पूरी तरह से डिजिटल हो चुके हैं।
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि भूमि अब कागजी झंझटों और विवादों से मुक्त हो रही है। लोग आत्मविश्वास के साथ अपने स्वामित्व के अधिकार का उपयोग कर पा रहे हैं।
प्रत्यक्ष लाभ: ऋण से लेकर सरकारी योजनाओं तक आर्थिक सशक्तिकरण की राह इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा और सीधा लाभ किसानों और छोटे उद्यमियों को मिला है। बैंक अब डिजिटल रिकॉर्ड्स की त्वरित पुष्टि के आधार पर तेज़ी से ऋण स्वीकृत कर रहे हैं। किसानों को बीज, खाद, सिंचाई और मिट्टी सुधार जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए पूंजी अब तुरंत उपलब्ध हो जाती है।
चंबा जिले के हरदासपुर गांव के रोहित कुमार का उदाहरण इस परिवर्तन का एक जीवंत प्रमाण है। पुराने दस्तावेजों के कारण जो रोहित कुमार न तो अपनी जमीन पर स्वामित्व सिद्ध कर पा रहे थे और न ही सरकारी कृषि अनुदानों का लाभ उठा पा रहे थे, वह अब डिजिटल रिकॉर्ड्स के आधार पर अपनी संपत्ति को गिरवी रखकर सहजता से बैंक ऋण प्राप्त कर रहे हैं। इसी तरह, शिमला के कुशल सिंह को भी अब अपनी भूमि के डिजिटल प्रमाण के आधार पर ऋण लेने में कोई कठिनाई नहीं आती।
सरल हुआ सुशासन
DILRMP ने सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभ को भी सरल बना दिया है। राजस्थान के चौथमल शर्मा को अब राजस्व कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते। प्रामाणिक डिजिटल भूमि अभिलेखों के कारण वे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि और प्रधानमंत्री फसल बीमा जैसी योजनाओं का आसानी से लाभ उठा रहे हैं और पुराने विवादों को भी सुलझा पाए हैं।
छत्तीसगढ़ के धनौरा गांव की शशि साहू और अन्य ग्रामीण अब कागज रहित भूमि रजिस्ट्री सेवाओं का लाभ लेते हैं। वे अब अपना ‘रिकॉर्ड ऑफ राइट्स’ ऑनलाइन डाउनलोड कर सकते हैं, और नामांकन (दाखिल-खारिज) के लिए उन्हें तहसीलदार या रजिस्ट्रार कार्यालय के चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है।

न्यायिक और प्रशासनिक सुधार
यह कार्यक्रम प्रशासनिक दक्षता भी बढ़ा रहा है। नगर निकाय अधिकारी अब भूमि उपयोग डाटा को विभिन्न योजनाओं से जोड़कर शहरी और ग्रामीण विकास की बेहतर योजनाएं बना रहे हैं। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) जैसी योजनाओं में डिजिटल रिकॉर्ड्स के जुड़ने से किसानों के लिए कम ब्याज पर ऋण मिलना और भी सरल हो गया है।
39 करोड़ से ज़्यादा भू-मालिक अब हिमाचल, महाराष्ट्र और केरल सहित देश के कई राज्यों में मालिकाना हक में हुए बदलाव दर्ज करने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
कानूनी मान्यता और पारदर्शिता
पाठकों को यह जानकर सुखद एहसास होगा कि देश के 19 राज्यों में डिजिटल हस्ताक्षरित ‘रिकॉर्ड ऑफ राइट्स’ को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त है, जिससे ग्रामीण नागरिकों के अधिकार और मजबूत हुए हैं। ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देते हुए, आठ राज्यों (जैसे छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश) के 276 जिलों में बैंकों को डिजिटल भूमि रिकॉर्ड के आधार पर गिरवी संपत्ति पर ऋण मंजूरी की अनुमति दी गई है।
सबसे महत्वपूर्ण, पंजाब, उत्तराखंड और झारखंड सहित 12 राज्यों में अब राजस्व न्यायालय सीधे ऑनलाइन भूमि दस्तावेज देख सकते हैं, जिससे विवादित मामलों का निपटारा तीव्र और पारदर्शी हो गया है।
भविष्य की ओर बढ़ते कदम
प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का ही यह जीवंत उदाहरण है कि आज कोई भी नागरिक जमीन खरीदने से पहले उसकी मालिकाना स्थिति, उस पर लंबित न्यायालयीन वादों, किसी किस्म के बकाया ऋण और अन्य आवश्यक जानकारियां ऑनलाइन देख सकता है। जो बात कुछ वर्षों पहले तक अकल्पनीय सी लगती थी, वह आज सामान्य नागरिक की पहुँच में है। सरकार भूमि से संबंधित सभी जानकारी और सेवाओं को एक ही मंच पर उपलब्ध कराने के लक्ष्य की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
निस्संदेह, DILRMP महज डिजिटलीकरण का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह पारदर्शिता, सशक्तीकरण, समानता और अवसर का माध्यम है। यह किसान और ग्रामीण नागरिक को आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाने और देश की विकास यात्रा में समान रूप से भागीदार बनने का अवसर देता है। यह स्पष्ट है कि ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान केवल तकनीकी परिवर्तन का प्रतीक नहीं है, बल्कि सुशासन और आम नागरिक के जीवन को सरल एवं सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता का भी स्पष्ट प्रमाण है।

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