
कुछ प्रतीक्षा के बाद ही सही, बिहार में विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा हो चुकी है। बिहार के राजनीतिक महत्व को देखते हुए पूरे देश की निगाहें इन चुनावों पर टिकी हैं। इस बार बिहार में 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। यह एक बड़ा बदलाव है, क्योंकि पिछली बार 2020 में तीन चरणों में मतदान हुआ था, और एक समय तो चार से ज्यादा चरणों की जरूरत पड़ती थी। दो चरणों में मतदान का अर्थ है कि बिहार में स्थितियाँ पहले से बेहतर हुई हैं और शासन-प्रशासन की कुशलता बढ़ी है।
सबसे पारदर्शी चुनाव का दावा और आलोचना का सामना
देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने चुनावी तिथियों की घोषणा करते हुए विश्वास जताया है कि बिहार में इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव भारत के इतिहास के सबसे पारदर्शी, सुरक्षित और सुगम चुनाव होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव आयोग ने इस बार बिहार में बहुत परिश्रम से काम किया है और अधिकारियों के बीच विश्वास बढ़ा है।
हालांकि, इसका एक दूसरा पहलू भी है। इस बार बिहार में चुनाव आयोग की जितनी आलोचना हुई है, उतनी पहले कभी नहीं हुई थी। बिहार चुनाव 2025 को मतदाता सूची विशेष पुनरीक्षण के लिए हमेशा याद किया जाएगा। चुनाव से ठीक पहले आयोग ने जब मतदाता पुनरीक्षण का जोखिम उठाया, तो जो लोग मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायत पहले से करते आ रहे थे, वे भी आयोग के खिलाफ खड़े हो गए।
बड़ी संख्या में ऐसे नेता थे, जिन्होंने चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया और पुनरीक्षण को रोकने की भी कोशिशें हुईं। पर सर्वोच्च न्यायालय की प्रेरणा से यह पुनरीक्षण संपन्न हो गया है। अब कोई विशेष विवाद नहीं है और यह अच्छी बात है कि आयोग अभी भी संशोधन या गड़बड़ी सुधारने के लिए तैयार है।

मतदाता सूची पुनरीक्षण: देश के लिए सबक
बिहार का यह चुनाव आयोग को भी हमेशा याद रहेगा। पुनरीक्षण का काम कुछ पहले हो सकता था, जिससे आयोग की इतनी आलोचना नहीं हुई होती। खैर, बिहार ने मतदाता सूची शुद्धिकरण का रास्ता देश को दिखा दिया है। मतदाता सूची पुनरीक्षण से जो सबक मिले हैं, उनसे सीखते हुए पूरे देश में पुनरीक्षण को जरूरत है। अब बिहार के 7.42 करोड़ मतदाताओं पर अपना भविष्य संवारने की जिम्मेदारी है।
सियासी समीकरण: रोचक मुकाबला
बिहार चुनाव का इतना ज्यादा महत्व कोई नई बात नहीं है। विगत दो दशक से एक विशेष क्रम बना हुआ है: लोकसभा चुनाव के अगले साल बिहार विधानसभा के चुनाव होते हैं। केंद्र में जो पार्टी विपक्षी गठबंधन में रहती है, वह बिहार विधानसभा चुनाव में अपना पूरा जोर लगा देती है, जिससे यह मुकाबला कुछ ज्यादा ही रोचक बन जाता है।
सियासी स्थिति का आकलन करें, तो:—-
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और नीतीश कुमार: लगभग बीस साल के शासन के बावजूद उनकी ताकत को कोई भी खारिज नहीं कर रहा है। भाजपा पूरी मजबूती से नीतीश कुमार के साथ खड़ी है, ताकि सत्ता बनी रहे।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाला महागठबंधन: यह गठबंधन ‘अभी नहीं, तो कभी नहीं’ वाले अंदाज में पूरा जोर लगा रहा है।

जन सुराज पार्टी (प्रशांत किशोर): प्रशांत किशोर अपनी बड़ी घोषणाओं और नई राजनीति की वजह से चर्चा में हैं और एक तीसरे विकल्प के रूप में उभर रहे हैं।
इन प्रमुख दावों के अलावा, अनेक छोटी पार्टियां भी अपना पूरा जोर लगा रही हैं। सियासी पार्टियों ने ऐसे-ऐसे इरादे जाहिर किए हैं कि यकीनन, बिहार बदलने वाला है। यह चुनाव इतना दिलचस्प हो गया है कि 14 नवंबर की मतगणना का इंतजार पूरे देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में बैठे बिहारी भी उत्सुकता से करेंगे।

राजनीति में विरोधी खेमे को खोदने और चिढ़ाने वाली खबरों को अलग महत्व होता है। इसके लिए नारद बाबा अपना कालम लिखेंगे, जिसमें दी जाने वाली जानकारी आपको हंसने हंसाने के साथ साथ थोड़ा सा अलग तरह से सोचने के लिए मजबूर करेगी। 2 दशक से पत्रकारिता में हाथ आजमाने के बाद अब नए तेवर और कलेवर में आ रहे हैं हम भी…..



