
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती ने लखनऊ में एक विशाल रैली आयोजित करके उत्तर प्रदेश के विपक्षी दलों को अपनी ताकत दिखाने में बड़ी सफलता हासिल की है। भारी भीड़ जुटाकर उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि उनका पारंपरिक दलित कोर वोटर आज भी उनके साथ मजबूती से खड़ा है, और अन्य दलों के लिए दलित वोटों में सेंधमारी करना उतना आसान नहीं होगा, जितना वे समझते हैं।
रैली के मंच से मायावती ने न केवल अपने आधार वोटरों को एकजुट रखने की कोशिश की, बल्कि मुसलमानों को भी लुभाने का प्रयास किया, जिससे आगामी विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई है।
दलित वोटों के बिखराव पर लगाम लगाने की रणनीति
विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 में दलित वोटों का बंटवारा देखा गया था, जिसका सीधा नुकसान बसपा को हुआ था। मायावती की यह रैली मुख्य रूप से इसी बंटवारे को रोकने और दलितों को एकजुट रखने की कोशिश है।
उन्होंने भीड़ जुटाकर यह दिखा दिया है कि उनका कैडर आज भी बसपा के झंडे तले खड़ा है। यदि दलित वोटों का बिखराव रुक जाता है और यह एकमुश्त बसपा को मिलता है, तो पार्टी को इसका सीधा फायदा होगा और वह राज्य की राजनीति में अपनी खोई हुई प्रासंगिकता दोबारा हासिल कर सकती है।
मुस्लिम फैक्टर: सपा-कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती
मायावती ने अपने भाषण में मुस्लिम समुदाय को साधने की भी पुरजोर कोशिश की। सत्ता में आने पर उनके हितों की रक्षा की बात कहकर उन्होंने मुसलमानों को बसपा के साथ आने का स्पष्ट संदेश दिया है। मायावती अच्छी तरह जानती हैं कि दलित और मुस्लिम वोटबैंक का साथ आने से बसपा को बड़ा लाभ हो सकता है।
वोट बंटवारे का खतरा
पिछली बार AIMIM ने सीमांचल में मुस्लिम वोटों को बाँटकर राजद को चुनौती दी थी। अब मायावती की इस रणनीति से सपा और कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती पैदा हो गई है।

यदि बसपा कुछ फीसदी मुस्लिम मतों पर भी कब्जा करने में कामयाब होती है, तो यह सीधे तौर पर सपा-कांग्रेस गठबंधन को कमजोर करेगा। हालाँकि, मुस्लिम वोटों के बंटवारे और दलितों का वोट रोके रहने से होने वाले बंटवारे के फायदे से भाजपा को भी लाभ मिल सकता है।
मुख्यमंत्री योगी के प्रति नरमी और संदेश
मायावती ने रैली में अपने भाषण के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति नरमी दिखाकर एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संदेश दिया है। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दिया है कि उन्हीं की तरह वह भी एक सख्त मुख्यमंत्री रही हैं, और भाजपा के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता के लिए अगर कोई योग्य है, तो वह केवल बसपा ही है।
उन्होंने जहाँ एक ओर सपा सरकार में मची अंधेरगर्दी और अराजकता पर जमकर हमला किया, वहीं योगी की ‘सख्ती’ पर नरमी दिखाकर अपनी राजनीति की शैली को भी दोहराया।
‘भाजपा की बी टीम’ का आरोप
हालांकि, मुख्यमंत्री की तारीफ से बसपा पर एक बार फिर भाजपा की ‘बी’ टीम होने के आरोपों को हवा मिल सकती है, जिससे पार्टी को नुकसान होने का भी जोखिम है।
लेकिन, मायावती की राजनीति की अपनी शैली है। वह नफा-नुकसान का आकलन किए बिना खुलकर बोलती हैं। उनकी यही आक्रामकता दलित-पिछड़ों के बीच उनकी लोकप्रियता का आधार भी रही है।
मायावती ने इस रैली से साफ कर दिया है कि यूपी के आगामी चुनाव में बसपा को नज़रअंदाज़ करना किसी भी दल के लिए भारी पड़ सकता है। अब देखना यह है कि उनकी यह रणनीति ज़मीन पर दलित और मुस्लिम वोटों को कितना एकजुट कर पाती है।

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