
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (PK) की जनसुराज पार्टी ने गुरुवार को अपनी पहली सूची जारी कर सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी महागठबंधन दोनों के लिए बड़ी चुनौती पेश कर दी है। 51 उम्मीदवारों की इस सूची के ज़रिए, PK ने साफ संकेत दिया है कि उनकी पार्टी दोनों प्रमुख गठबंधनों के कोर वोट बैंक में ज़बरदस्त सेंधमारी की तैयारी में है।
जनसुराज ने उम्मीदवारों के चयन में ऐसा जटिल समीकरण साधा है, जो बिहार की पारंपरिक वोटबैंक की राजनीति को उलझा रहा है।
महागठबंधन के मुस्लिम कोर वोट बैंक पर सीधी चोट
जनसुराज की पहली सूची ने सबसे ज़्यादा चिंता विपक्षी महागठबंधन, खासकर राजद की बढ़ाई है।
मुस्लिम उम्मीदवार: जनसुराज ने पहली सूची में छह मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया है। मुस्लिम मतदाता, जिन्हें बिहार में 17% से अधिक माना जाता है, पारंपरिक रूप से राजद का सबसे मजबूत कोर वोट बैंक रहे हैं।
रणनीतिक सीटें: PK ने इन उम्मीदवारों को मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर उतारा है, जहाँ मतदाता या तो बहुसंख्यक हैं या उनकी उपस्थिति बेहद प्रभावशाली है।

इनमें सीमांचल की तीन सीटें (सिकटी, अमौर और वैसी) शामिल हैं, जहाँ मुस्लिम मतदाता बहुसंख्यक हैं।
कोसी की महिषी और मिथिलांचल की दो सीटें (बेनीपट्टी और दरभंगा) भी शामिल हैं, जहाँ इनकी हिस्सेदारी 16% से 22.5% के बीच है।
पिछले चुनाव में AIMIM ने सीमांचल में मुस्लिम वोटबैंक के मामले में राजद को कड़ी चुनौती दी थी। इस बार जनसुराज की एंट्री और AIMIM की सीमांचल के इतर सीटों पर उम्मीदवार उतारने की योजना से महागठबंधन को बड़ा नुकसान हो सकता है। मुस्लिम वोटों के इस बंटवारे का सीधा फायदा NDA को मिल सकता है।
NDA और भाजपा की राह में PK का रोड़ा
जहाँ एक ओर PK ने महागठबंधन के समीकरण बिगाड़े हैं, वहीं दूसरी ओर NDA (खासतौर पर भाजपा और जदयू) के कोर वोट बैंक में भी सेंधमारी की है:
EBC और अगड़ा वर्ग पर फोकस: जनसुराज ने अपने 51 में से लगभग 50 प्रतिशत (25 टिकट) अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) और अगड़ा वर्ग को दिए हैं।
EBC (अत्यंत पिछड़ा वर्ग): बिहार में करीब एक तिहाई मतदाता EBC से हैं, जो पिछले दो दशकों से सत्ता की चाबी रहे हैं और इनमें NDA, खासकर जदयू का व्यापक प्रभाव है।
अगड़ा वर्ग (सवर्ण): यह वर्ग करीब 15% है और परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थक माना जाता है।
जनसुराज की यह रणनीति सीधे इन दोनों वर्गों के थोक वोट को NDA से दूर करने का प्रयास है।

शहरी मतदाताओं पर आकर्षण: जनसुराज पार्टी पलायन, बेरोजगारी, और बदहाल स्वास्थ्य-शिक्षा जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठा रही है, जिनका राज्य के शहरी क्षेत्रों में बेहद आकर्षण है। शहरी क्षेत्र पारंपरिक रूप से भाजपा की मुख्य ताकत रहे हैं।
सोशल मीडिया और प्रचार: जहाँ पहले सोशल मीडिया पर भाजपा का मजबूत दखल था, वहीं अब जनसुराज का प्रचार स्तर अन्य सभी दलों की तुलना में अधिक है, जो शहरी और युवा मतदाताओं के बीच भाजपा के डिजिटल एकाधिकार को चुनौती दे रहा है।
पार्टी ने पिछड़ा वर्ग को 11 और अनुसूचित जाति (SC) को 7 टिकट भी दिए हैं।
प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने अपनी पहली सूची के ज़रिए यह साफ कर दिया है कि वह बिहार में केवल औपचारिकता पूरी करने नहीं आई है, बल्कि दोनों बड़े गठबंधनों के समीकरणों को उलझाकर निर्णायक भूमिका निभाने की तैयारी में है। इस ‘उलझन’ का फायदा किसे मिलेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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