
भारतीय राजनीति के फलक पर कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो किसी दल की सीमाओं से परे जाकर, राजनीतिक चेतना और विचारधारा के प्रतीक बन जाते हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठतम नेता, पूर्व उपप्रधानमंत्री और संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी ऐसा ही एक नाम हैं। उनका जीवन, 1980 में महज दो सीटों से शुरू हुई पार्टी को राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने की गाथा है, जो विचार, निष्ठा और देशभक्ति की एक अविश्वसनीय यात्रा का प्रमाण है।

विभाजन की त्रासदी से राष्ट्रसेवा की ओर
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को अविभाजित भारत के कराची (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनके बचपन पर देश के विभाजन की गहरी छाप पड़ी, जिसके कारण उन्हें भी दिल्ली का रुख करना पड़ा। उन्होंने सेंट पैट्रिक स्कूल, कराची और बाद में बॉम्बे लॉ कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की।
महज 14 साल की किशोर अवस्था में ही, आडवाणी राष्ट्रसेवा के पथ पर चल पड़े और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए। यहीं से उनके राजनीतिक और वैचारिक जीवन की नींव पड़ी।

पत्रकारिता से जनसंघ और आपातकाल
अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से की। उन्होंने ‘ऑर्गनाइजर’ नामक साप्ताहिक में सह-संपादक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्हें भारतीय राजनीति की बारीकियों और गहराइयों को करीब से देखने का अवसर मिला, जिसने उन्हें एक विचारवान राजनीतिज्ञ के रूप में गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1950 के दशक में, आडवाणी जनसंघ से जुड़े और शीघ्र ही संगठन के प्रमुख स्तंभ बन गए। उनकी संगठनात्मक क्षमता और वैचारिक स्पष्टता ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचाया। 1970 में वे राज्यसभा पहुंचे, और 1973 में उन्हें जनसंघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। देश में जब 1975 में आपातकाल लागू हुआ, तब लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ने के कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया और वे महीनों तक बेंगलुरु जेल में कैद रहे।

भाजपा का चमत्कारिक सफर: 2 से 161 सीटों तक
आपातकाल के बाद 1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार में लालकृष्ण आडवाणी ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री का पद संभाला। हालांकि, 1980 में जनता पार्टी के विघटन के बाद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गठन हुआ, जिसमें वे एक संस्थापक सदस्य बने।
उनका संगठनात्मक नेतृत्व 1986 से 1998 तक पार्टी अध्यक्ष के रूप में रहा, जो भाजपा के इतिहास का सबसे निर्णायक दौर साबित हुआ। उन्हीं के नेतृत्व में भाजपा ने लोकसभा चुनावों में एक चमत्कारिक सफर तय किया:
1984: 2 सीटें
1989: 86 सीटें
1996: 161 सीटें
राम रथ यात्रा और वैचारिक विमर्श
भाजपा को एक छोटे से राजनीतिक दल से जनआंदोलन की पार्टी बनाने में उनकी राम रथ यात्रा (1990) की भूमिका ऐतिहासिक है। इस यात्रा ने भारतीय राजनीति में वैचारिक विमर्श को एक नई दिशा दी और पार्टी के आधार को व्यापक बनाया। बाद में, स्वर्ण जयंती रथ यात्रा (1997) के माध्यम से उन्होंने देश की स्वतंत्रता के 50 वर्षों के राष्ट्रीय उत्सव को जनता तक पहुंचाया।
गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में ऐतिहासिक भूमिका
1999 से 2004 तक, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल के प्रमुख स्तंभ रहे। इस अवधि में उन्होंने गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री का पद संभाला। इस दौरान, भारत की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने और वैश्विक मंच पर देश की छवि को सुदृढ़ करने में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही।
अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार उनके बारे में कहा था कि आडवाणी ने कभी अपने राष्ट्रवादी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और जब-जब परिस्थिति ने मांग की, उन्होंने राजनीतिक लचीलापन भी दिखाया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि विचार और व्यवहार का यही संतुलन उन्हें एक आदर्श राजनेता बनाता है।
आडवाणी ने 1965 में कमला आडवाणी से विवाह किया, जिनसे उन्हें दो बच्चे—प्रतिभा और जयंत—प्राप्त हुए। लालकृष्ण आडवाणी का जीवन यह सिद्ध करता है कि निष्ठा, विचार और देशभक्ति अगर साथ हों, तो कोई भी राजनीतिक यात्रा असंभव नहीं है।

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