
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने शानदार जीत हासिल करते हुए एक बार फिर अपना दबदबा साबित किया है। शुक्रवार को घोषित हुए परिणामों में एबीवीपी ने 4 में से 3 प्रमुख पदों, यानी अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पर कब्जा जमाया। यह जीत एबीवीपी की छात्र राजनीति में मजबूत पकड़ और ‘राष्ट्र प्रथम’ की विचारधारा के प्रति युवाओं के बढ़ते विश्वास का प्रतीक मानी जा रही है।
अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पद पर एबीवीपी की जीत
डूसू चुनाव के लिए गुरुवार को 195 बूथों पर मतदान हुआ, जिसमें 39.45% छात्रों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। वोटों की गिनती शुक्रवार सुबह 8 बजे शुरू हुई। शुरुआत से ही एबीवीपी के उम्मीदवारों ने बढ़त बनाए रखी, जिससे उनकी जीत लगभग तय लग रही थी। आखिरकार, चुनाव आयोग ने अध्यक्ष पद पर आर्यन मान को, सचिव पद पर कुणाल चौधरी को और संयुक्त सचिव पद पर दीपिका झा को विजयी घोषित किया। इस जीत ने एबीवीपी के खेमे में जश्न का माहौल पैदा कर दिया।
वहीं, उपाध्यक्ष पद पर भी एबीवीपी के उम्मीदवार गोविंद तंवर ने एनएसयूआई के प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी। हालांकि, इस पद पर एनएसयूआई ने जीत हासिल की, जिससे उनका खाता खुल सका। कुल मिलाकर, यह चुनाव एबीवीपी के लिए एक बड़ी सफलता और एनएसयूआई के लिए एक झटका माना जा रहा है।
एनएसयूआई ने धांधली का आरोप लगाया
चुनाव में केवल एक सीट जीतने के बाद, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) ने चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर अपनी निराशा व्यक्त करते हुए इसे ‘अनोखा चुनाव’ बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस चुनाव में एनएसयूआई को न केवल एबीवीपी, बल्कि डीयू प्रशासन, दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, आरएसएस-बीजेपी और दिल्ली पुलिस की ‘संयुक्त ताकत’ का भी सामना करना पड़ा।
वरुण चौधरी ने सीधे तौर पर चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, “ईवीएम में हेराफेरी करके और डीयू चुनाव टीम के प्रोफेसरों का इस्तेमाल करके चुनाव में धांधली करने की भी कोशिश की गई।” हालांकि, उन्होंने अपने नवनिर्वाचित उपाध्यक्ष राहुल झांसला और अन्य सभी विजयी पदाधिकारियों को शुभकामनाएं दीं। उन्होंने यह भी कहा कि हार या जीत से फर्क नहीं पड़ता, एनएसयूआई हमेशा छात्रों के मुद्दों के लिए लड़ती रहेगी और भविष्य में और मजबूत होकर उभरेगी।

एबीवीपी की जीत पर भाजपा नेताओं ने दी बधाई
डूसू चुनाव में एबीवीपी की शानदार जीत के बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई बड़े नेताओं ने परिषद के कार्यकर्ताओं और विजयी उम्मीदवारों को बधाई दी। इन नेताओं ने एबीवीपी की जीत को ‘राष्ट्र प्रथम’ की विचारधारा में युवाओं के बढ़ते विश्वास का प्रतीक बताया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘एक्स’ पर लिखा, “यह जीत युवाओं की राष्ट्र प्रथम की विचारधारा में अटूट विश्वास का प्रतिबिंब है। इस विजय से परिषद की छात्र शक्ति को राष्ट्र शक्ति में परिवर्तित करने की यात्रा को और अधिक गति मिलेगी।”
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी एबीवीपी की जीत पर युवा साथियों को हार्दिक बधाई दी। उन्होंने लिखा, “स्वामी विवेकानंद के आदर्शों पर चलते हुए एबीवीपी ने सदैव युवाओं को राष्ट्रवाद और निस्वार्थ सेवा की भावना से प्रेरित किया है। यह विजय दर्शाती है कि युवा पीढ़ी ‘राष्ट्र प्रथम’ के संदेश को अपना रही है, जो भारत को एक उज्ज्वल और सुदृढ़ भविष्य की ओर ले जाएगा।”
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने भी एबीवीपी की जीत को ‘राष्ट्रभक्ति, अनुशासन, सेवा और संघर्ष’ का प्रतीक बताया। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, “यह परिणाम दिखाता है कि दिल्ली का युवा ज्ञान, शील और एकता के उस विचार और संघर्ष के पथ पर अडिग है जिसे एबीवीपी ने दशकों पहले स्थापित किया था।”
भाजपा सांसद रवि किशन ने भी एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को बधाई देते हुए लिखा, “दिल्ली में भगवा रंग चढ़ा। यह जीत एबीवीपी के प्रति विद्यार्थियों के अटूट विश्वास, विकसित विश्वविद्यालय के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों के संकल्प और अभाविप के प्रति विद्यार्थियों के आशीर्वाद व स्नेह की जीत है।”

चुनाव प्रक्रिया और उम्मीदवारों का विवरण
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में इस साल चार मुख्य पदों – अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव – के लिए कुल 21 उम्मीदवार मैदान में थे। इनमें से अध्यक्ष पद के लिए 9 उम्मीदवार थे, जबकि शेष 12 उम्मीदवार अन्य तीन पदों के लिए चुनाव लड़ रहे थे। मतदान के लिए 195 बूथों पर 711 इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें 39.45 प्रतिशत छात्रों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो पिछले वर्षों की तुलना में थोड़ा कम रहा।
एबीवीपी की यह जीत न केवल संगठन के लिए एक बड़ी सफलता है, बल्कि यह भी दिखाती है कि दिल्ली के छात्र अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं को लेकर स्पष्ट हैं। जहां एक ओर एबीवीपी इस जीत से उत्साहित है, वहीं दूसरी ओर एनएसयूआई को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

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