
दिल्ली, जो वर्षों से दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के कलंक को ढो रही है, एक बार फिर पर्यावरण और परंपरा के बीच उलझती दिख रही है। दीपावली के मौके पर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ग्रीन पटाखों की अनुमति के लिए याचिका दायर करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री ने इसे जन-भावनाओं का सम्मान बताते हुए पर्व और पर्यावरण दोनों को समान रूप से जरूरी करार दिया। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम वास्तव में जन-भावनाओं की रक्षा करेगा या पर्यावरणीय संकट को और गहरा करेगा?
प्रदूषण की पृष्ठभूमि और पराली का बहाना
हर साल दीपावली के आसपास दिल्ली की वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है। इस स्थिति के लिए अक्सर पड़ोसी राज्यों—पंजाब, हरियाणा, राजस्थान—के किसानों को दोषी ठहराया जाता है, जो पराली जलाते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को फटकार लगाई कि वह नियमों के उल्लंघन पर कार्रवाई नहीं कर रही। अदालत ने पूछा कि यदि पर्यावरण संरक्षण का इरादा सच्चा है, तो दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
यहां विडंबना यह है कि जब पड़ोसी राज्यों को दिल्ली के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, तब खुद दिल्ली सरकार पटाखों की पैरवी कर रही है। यह विरोधाभास नीतिगत असमंजस को दर्शाता है।
ग्रीन पटाखों की सच्चाई
हरित पटाखों को पारंपरिक पटाखों की तुलना में पर्यावरण के अनुकूल बताया जाता है। इनमें बोरियम नाइट्रेट जैसे खतरनाक रसायन नहीं होते, और ध्वनि प्रदूषण भी अपेक्षाकृत कम होता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये पूर्णतः प्रदूषण मुक्त नहीं हैं। सामान्य पटाखों की तुलना में ये केवल 30% तक राहत देते हैं। ध्वनि सीमा भी 100–130 डेसिबल तक होती है, जो अब भी संवेदनशील वर्गों—बच्चों, बुजुर्गों और रोगियों—के लिए हानिकारक है।

इसलिए यह दावा कि ग्रीन पटाखे पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं, अधूरा और भ्रामक है। ऐसे में दिल्ली सरकार अदालत में इस मांग को कैसे उचित ठहराएगी, यह एक बड़ा सवाल है।
उत्सव की भावना बनाम सार्वजनिक स्वास्थ्य
दीपावली भारत का सबसे बड़ा पर्व है, और इसके उल्लास में कोई कमी नहीं आनी चाहिए। लेकिन जब उत्सव का तरीका नागरिकों की सेहत पर असर डालने लगे, तब एक जिम्मेदार समाज के रूप में हमें विकल्पों पर विचार करना चाहिए। क्या हम रोशनी, संगीत, सामूहिक आयोजन और पारंपरिक विधियों से त्योहार की खुशी नहीं मना सकते?
पटाखों की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध के बावजूद दिल्ली में चोर-बाजारी होती रही है। यदि सरकार ग्रीन पटाखों की अनुमति देती है, तो यह अवैध विक्रेताओं को नया रास्ता दिखा सकती है। साथ ही, ग्रीन पटाखे आम पटाखों की तुलना में महंगे होते हैं, जिससे सामाजिक असमानता भी बढ़ सकती है।
बाजारवाद और त्योहारों की मूल भावना
आज के दौर में त्योहारों को बाजार ने आडंबर और प्रदर्शन का माध्यम बना दिया है। दीपावली, जो अंधकार को प्रकाश में बदलने का प्रतीक है, अब शोर-शराबे और प्रदूषण का पर्याय बनती जा रही है। आतिशबाजी से उत्पन्न ध्वनि और वायु प्रदूषण बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा जैसे रोगों से पीड़ित लोगों के लिए गंभीर खतरा बनता है।
सरकारों को जन-भावनाओं का सम्मान करते हुए विवेकपूर्ण निर्णय लेने चाहिए। जन-भावनाएं केवल परंपरा से जुड़ी नहीं होतीं, वे स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील होती हैं।

नीति निर्माण की दिशा
दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह ग्रीन पटाखों की अनुमति मांगने के बजाय नागरिकों को वैकल्पिक और पर्यावरण-अनुकूल उत्सव मनाने के लिए प्रेरित करे। स्कूलों, सामुदायिक केंद्रों और मीडिया के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाएं। यदि सरकार खुद पर्यावरण के प्रति लापरवाह दिखेगी, तो जनता से जिम्मेदारी की उम्मीद करना व्यर्थ होगा।
इसलिए, हरित पटाखों की पैरवी केवल एक कानूनी याचिका नहीं, बल्कि नीति निर्माण की दिशा का संकेत है। यह तय करना होगा कि हम उत्सवों को पर्यावरण के साथ संतुलन में कैसे मनाएं। दीपावली का संदेश अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का है—अब समय है कि हम प्रदूषण से स्वच्छता की ओर बढ़ें।

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