
इस साल गांधी जयंती के अवसर पर, वाराणसी (काशी) को ‘भिक्षावृत्ति मुक्त’ शहर घोषित करने की तैयारी चल रही है। यह पहल भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ‘स्माइल’ परियोजना के तहत की जा रही है। इस परियोजना का लक्ष्य भिक्षुकों को मुख्यधारा से जोड़ना और भिक्षावृत्ति को समाप्त करना है।
इस अभियान के तहत एक बड़ा प्रचार-प्रसार कार्यक्रम चलाया जा रहा है, जिसमें स्कूलों में दो लाख बच्चों को संकल्प दिलाया जाएगा। इन बच्चों को शपथ पत्र भी भराया जा रहा है जिसमें वे ‘भिखारी को नकदी न देने’ और अपने परिवारों को भी इस बारे में जागरूक करने का संकल्प ले रहे हैं। इस छोटी सी भागीदारी के लिए बच्चों को सरकार की ओर से प्रमाण पत्र भी दिए जाएंगे। इसके अलावा, जिला प्रशासन कूड़ा गाड़ियों, बैनर, पोस्टर और होर्डिंग्स के माध्यम से भी जागरूकता फैला रहा है।

भिक्षुकों का पुनर्वास और सरकारी योजनाएं
प्रशासन और ‘अपना घर आश्रम’ जैसी सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से, भिक्षुकों के जीवन में बदलाव आ रहा है। अभियान के दौरान 546 भिक्षुकों का रेस्क्यू किया गया, जिनमें से 208 को उनके घर वापस भेजा गया और 225 को ‘अपना घर आश्रम’ में आश्रय दिया गया। आश्रम में रह रहे 500 से अधिक लोगों में से 28 को वृद्धावस्था पेंशन, 18 को आयुष्मान कार्ड और 449 को आधार कार्ड मिले हैं। इसके अलावा, 36 से अधिक लोगों को दोना-पत्तल बनाने, बाती और सिलाई जैसे लघु उद्यमों से जोड़कर उनका कौशल विकास किया गया है।
‘अपना घर आश्रम’ पिछले तीन साल से वाराणसी में भिक्षुकों के पुनर्वास के लिए काम कर रहा है। उनकी टीम ने संकट मोचन मंदिर क्षेत्र को पहले ही भिक्षुकों से मुक्त घोषित कर दिया है। संचालक डॉ. के. निरंजन ने कहा कि “भिक्षावृत्ति एक अभिशाप है, और इसे खत्म करने के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।” उनका कहना है कि इस सामूहिक प्रयास से ही काशी को भिक्षावृत्ति मुक्त बनाने का लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा।

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