
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राज्य के सभी 12 राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाया है। न्यायालय ने इन दलों को निर्देश दिया है कि वे एसआईआर प्रक्रिया के दौरान मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए लोगों की सहायता करें, ताकि उनके नाम मतदाता सूची में शामिल किए जा सकें।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। बेंच ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि बिहार में राजनीतिक दलों के 1.68 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंट (बीएलए) हैं, लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार, इस प्रक्रिया में केवल दो आपत्तियां दर्ज की गई हैं। यह संख्या राजनीतिक दलों की उदासीनता और मतदाताओं की समस्याओं पर उनके कम ध्यान को दर्शाती है।
चुनाव आयोग ने मांगा था राजनीतिक दलों से सहयोग
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से एसआईआर प्रक्रिया में आगे आकर सहयोग करने की अपील की थी। इसके बाद, न्यायालय ने बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को आदेश दिया कि वे राज्य की सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को नोटिस जारी करें।
कोर्ट ने राजनीतिक दलों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे अपने बीएलए को प्रशिक्षित करें और उन्हें निर्देश दें कि वे मतदाताओं को जरूरी फॉर्म जमा करने में मदद करें। मतदाताओं को अपने नाम मतदाता सूची में शामिल कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा सूचीबद्ध 11 दस्तावेजों या आधार कार्ड के साथ आवेदन करना होगा।
चुनाव आयोग ने कोर्ट को दी जानकारी
इससे पहले, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया था, जिसमें बताया गया था कि न्यायालय के निर्देशों का पालन किया गया है। आयोग ने कहा कि उसने ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न होने वाले लगभग 65 लाख लोगों की बूथवार सूची अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी है।
चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि ड्राफ्ट लिस्ट में नाम शामिल न किए जाने के कारणों का भी खुलासा किया गया है और यह जानकारी जिला स्तर पर वेबसाइट पर उपलब्ध है।
पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को उन 65 लाख लोगों की सूची जारी करने का निर्देश दिया था, जिनके नाम ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किए गए थे। कोर्ट ने आयोग से यह भी पूछा था कि आखिर उनके नाम शामिल न करने की वजह क्या है।
बिहार विधानसभा चुनावों से पहले की तैयारी
सुप्रीम कोर्ट आगामी बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के आदेश देने वाले चुनाव आयोग के 24 जून के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इस प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूचियों को त्रुटिहीन बनाना है।
न्यायालय के इस फैसले ने बिहार में राजनीतिक दलों की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। अब वे केवल चुनावी लाभ के लिए काम नहीं कर सकते, बल्कि उन्हें मतदाताओं की सहायता करने के लिए भी जवाबदेह ठहराया जाएगा। इस आदेश से उम्मीद है कि मतदाता सूची में होने वाली त्रुटियां कम होंगी और योग्य मतदाताओं के नाम बिना किसी परेशानी के शामिल हो पाएंगे। यह फैसला राजनीतिक दलों को उनकी जिम्मेदारियों का एहसास दिलाता है और लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।

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