
मानसून सत्र के आगाज़ से ठीक पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने सरकार और विपक्ष दोनों से आग्रह किया है कि वे आपसी टकराव से ऊपर उठकर जनहित और देशहित के मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा करें। उन्होंने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल के माध्यम से यह संदेश जारी किया।
जनता को चाहिए समाधान, न कि शोरगुल
मायावती ने चेताया कि यदि पिछली बार की तरह इस बार भी संसद हंगामे और आरोप-प्रत्यारोप की भेंट चढ़ी, तो देश की जनता को निराशा ही हाथ लगेगी। उन्होंने कहा- “महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, क्षेत्रीय विवाद और सीमाओं की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ठोस नीतियों की आवश्यकता है, लेकिन दुर्भाग्यवश संसद में शोर-शराबा हावी हो जाता है।”
देश की सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता
मायावती ने विशेष रूप से पहलगाम नरसंहार और ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ जैसे मामलों का ज़िक्र करते हुए इन पर सकारात्मक और विस्तृत चर्चा की मांग की।
उन्होंने कहा कि सीमाओं की सुरक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है, जिसमें विपक्ष की भी भूमिका होनी चाहिए। देश और जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है। इसके लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।
बदलते वैश्विक परिदृश्य में ज़रूरत है एकजुटता की
बसपा प्रमुख ने वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक हालातों में आ रहे बदलावों का ज़िक्र करते हुए लोकतंत्र और संप्रभुता के समक्ष उत्पन्न हो रही नई चुनौतियों पर भी ध्यान देने की बात कही।
उन्होंने कहा-“सरकार को चाहिए कि वह विपक्ष और आम जनता को विश्वास में लेकर काम करे। पार्टी की सीमा से बाहर निकलकर एकजुटता दिखाना समय की मांग है।”
संसद से है जनता को उम्मीद
मायावती ने उम्मीद जताई कि यह मानसून सत्र राजनीति की बजाय नीतियों का मंच बनेगा और देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि संसद का उद्देश्य केवल चर्चा नहीं, बल्कि समाधान देना है — और यही इस सत्र की कसौटी होगी।
मायावती का यह बयान संसद सत्र की शुरुआत से पहले एक जिम्मेदार और संतुलित राजनीतिक नेतृत्व की अपील है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सत्ता पक्ष और विपक्ष इस दिशा में कितना सहयोग करते हैं और क्या वाकई संसद की कार्यवाही जनता की उम्मीदों पर खरी उतरती है।

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