
चंद्रशेखर आजाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी, जिनका नाम आज भी देशभक्ति, बलिदान और अदम्य साहस का पर्याय है। 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव (आज का चंद्रशेखर आजाद नगर) में जन्मे इस बालक ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में अपने जीवन को पूरी तरह समर्पित कर दिया। उनका जीवन सामान्य था, पर उनके विचार असाधारण। बचपन से ही उनके भीतर देश के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प था, जो आगे चलकर एक चिंगारी से ज्वाला बन गया।
‘आजाद’ नाम ही बन गई पहचान
1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उनके किशोर मन को झकझोर दिया। इसके बाद वे महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में शामिल हुए। महज 13 साल की उम्र में पहली बार गिरफ्तार हुए। जब अदालत में मजिस्ट्रेट ने उनका नाम पूछा, तो उन्होंने गर्व से कहा – “नाम – आजाद, पिता का नाम – स्वतंत्रता, और निवास – जेल।” इसके बाद वे पूरे देश में “चंद्रशेखर आजाद” के नाम से प्रसिद्ध हो गए। यह नाम केवल उनका परिचय नहीं, बल्कि उनका संकल्प बन गया।
क्रांतिकारी आंदोलन में अग्रणी भूमिका
आजाद ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि उसे संगठित और सशक्त भी किया। वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के प्रमुख नेता बने और भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अंग्रेजी सत्ता को सीधी चुनौती दी। 1925 का काकोरी कांड, जिसमें सरकारी खजाने को लूटा गया था, क्रांति की दिशा में एक निर्णायक कदम था। इस घटना ने आजाद को अंग्रेजों की नजरों में ‘मोस्ट वांटेड’ बना दिया।

शहादत: वीरता की अंतिम गाथा
27 फरवरी 1931, इलाहाबाद का अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आजाद पार्क) – वह स्थान जहां आजाद ने अपने अंतिम संकल्प को निभाया। अंग्रेजों की पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था। पर आजाद ने हार नहीं मानी। उन्होंने आखिरी गोली तक मुकाबला किया और जब कोई रास्ता नहीं बचा, तो अपनी ही पिस्तौल से खुद को गोली मार ली। उन्होंने कहा था – “मैं दुश्मन की गोली से नहीं मरूंगा। आजाद ही जिया हूं, आजाद ही मरूंगा।” उनकी शहादत आज भी हर भारतीय को रुला देती है और प्रेरित करती है।
आजाद की विचारधारा और प्रेरणा
चंद्रशेखर आजाद सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, वे विचारों के धनी भी थे। उनका मानना था कि “स्वतंत्रता भीख में नहीं मिलती, उसे छीनना पड़ता है।” उन्होंने युवाओं में जागरूकता और संगठन की भावना जगाई। वे सादगी, अनुशासन और निर्भीकता के प्रतीक थे। उन्होंने हमेशा कहा कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
विरासत जो आज भी जीवित है
आज जब हम एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में सांस ले रहे हैं, तो यह चंद्रशेखर आजाद जैसे वीरों की शहादत का ही परिणाम है। उनकी गाथा सिर्फ इतिहास की बात नहीं, बल्कि यह आज भी हर भारतीय के भीतर देश के प्रति प्रेम और त्याग की भावना को जगाने वाली प्रेरणा है।
उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि “अगर संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी ताकत आजादी की राह में बाधा नहीं बन सकती।” चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर हम उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं और उनके बलिदान को नमन करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।

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