
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित ‘भागीदारी न्याय सम्मेलन’ में कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को ओबीसी वर्ग को लेकर आत्मस्वीकृति और आगे की प्रतिबद्धता दोनों जताईं। उन्होंने कहा कि वह पिछले दो दशकों से राजनीति में हैं, लेकिन ओबीसी वर्ग के हितों की रक्षा उतनी मजबूती से नहीं कर सके, जितनी जरूरत थी।
ओबीसी वर्ग को लेकर मानी अपनी चूक
राहुल गांधी ने मंच से स्वीकार किया कि उन्होंने दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के मुद्दों पर बेहतर कार्य किया, लेकिन ओबीसी वर्ग के साथ न्याय नहीं कर पाए। उन्होंने कहा, “ओबीसी वर्ग की कठिनाइयाँ आसानी से सामने नहीं आतीं, इसलिए पहले मैं उन्हें गहराई से समझ नहीं पाया। अब मैं इस गलती को सुधारने जा रहा हूं।”
जातिगत जनगणना को बताया आवश्यक कदम
राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि यदि उन्हें पहले ओबीसी वर्ग की वास्तविक परेशानियों का ज्ञान होता, तो वह उसी वक्त जातिगत जनगणना करवाते। उन्होंने कहा, “ये मेरी गलती थी, लेकिन अब मैं इसे ठीक करूंगा। अब जो जनगणना होगी, वह अधिक प्रभावशाली और वास्तविकता को दर्शाने वाली होगी।”
21वीं सदी को बताया ‘डेटा की सदी’
उन्होंने तेलंगाना सरकार की जातिगत जनगणना का उदाहरण देते हुए कहा कि आंकड़ों के जरिए ही यह स्पष्ट किया जा सकता है कि कॉरपोरेट सेक्टर और सरकारी संसाधनों में किन वर्गों को वास्तविक भागीदारी मिल रही है। उन्होंने बताया कि मनरेगा और गिग वर्क जैसे क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतर लोग एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग से हैं, जबकि बड़े पदों और बजट के लाभ में इन वर्गों की भागीदारी नगण्य है।
90% आबादी को बताया ‘हलवा बनाने वाला वर्ग’
राहुल गांधी ने बजट प्रक्रिया की भी आलोचना की और कहा कि देश की 90% आबादी – जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग शामिल है – असल में देश की प्रोडक्टिव फोर्स है। लेकिन जब बजट का ‘हलवा’ बांटा जाता है, तो उनके लिए कुछ नहीं बचता। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “हम यह नहीं कह रहे कि बाकी लोग हलवा न खाएं, पर आपको भी हिस्सा मिलना चाहिए।”
भविष्य के लिए जताई प्रतिबद्धता
राहुल गांधी ने भरोसा दिलाया कि आगे चलकर कांग्रेस ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्गों को हक दिलाने की दिशा में ठोस कदम उठाएगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जनगणना, बजट आवंटन और नीति निर्धारण में इन वर्गों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी।
राहुल गांधी का यह आत्ममंथन और राजनीतिक प्रतिबद्धता दर्शाती है कि कांग्रेस आने वाले समय में सामाजिक न्याय की राजनीति को केंद्र में रखकर चलने का प्रयास कर रही है। अब देखना होगा कि ये वादे जमीनी स्तर पर कितनी मजबूती से लागू होते हैं।

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