
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली में अपनी चुनाव समिति की बैठक बुलाई है, जिसमें प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व के प्रमुख नेता शामिल हो रहे हैं। यह बैठक न केवल उम्मीदवारों के चयन और सीटों के बंटवारे पर केंद्रित है, बल्कि पार्टी की रणनीतिक दिशा और संगठनात्मक मजबूती को लेकर भी अहम मानी जा रही है।
प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु के बयानों से स्पष्ट है कि पार्टी इस बार चुनावी तैयारी को गंभीरता से ले रही है। राजेश राम ने कहा कि बैठक में उम्मीदवारों के चयन के साथ-साथ सीट शेयरिंग जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी। यह बयान उस राजनीतिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करता है, जिसमें कांग्रेस को महागठबंधन के भीतर अपनी भूमिका को फिर से परिभाषित करना है।
उम्मीदवार चयन: चेहरों की विश्वसनीयता और स्थानीय पकड़
कांग्रेस की चुनावी रणनीति में उम्मीदवारों का चयन एक निर्णायक पहलू है। कृष्णा अल्लावरु ने स्पष्ट किया कि पार्टी यह तय करने जा रही है कि किसे कहां से उतारा जाए, ताकि प्रदेश की राजनीतिक स्थिति को अपने पक्ष में मोड़ा जा सके। यह संकेत करता है कि पार्टी अब केवल पारंपरिक चेहरों पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि स्थानीय प्रभाव, सामाजिक समीकरण और जनविश्वास को ध्यान में रखते हुए प्रत्याशी तय करेगी।
सीट शेयरिंग: गठबंधन की जटिलता और संतुलन की चुनौती
बिहार में कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है, जिसमें राजद, वाम दल और अन्य क्षेत्रीय दल शामिल हैं। सीटों का बंटवारा इस गठबंधन की सबसे बड़ी चुनौती है। कांग्रेस को अपनी ताकत के अनुरूप सीटें चाहिए, लेकिन गठबंधन की एकता बनाए रखना भी जरूरी है। ऐसे में यह बैठक सीट शेयरिंग के फार्मूले को अंतिम रूप देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।
विकास का एजेंडा और जनसंवाद की रणनीति
कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा कि बिहार का भविष्य उनके लिए मायने रखता है और वे चौतरफा विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह बयान चुनावी वादों की दिशा में पार्टी की सोच को दर्शाता है। हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस को केवल घोषणाओं से आगे बढ़कर जमीनी स्तर पर जनसंवाद और विश्वास निर्माण की रणनीति अपनानी होगी।

संगठनात्मक पुनर्गठन की आवश्यकता
बिहार में कांग्रेस का संगठन लंबे समय से कमजोर माना जाता रहा है। इस बैठक को संगठनात्मक पुनर्गठन की दिशा में भी एक अवसर माना जा रहा है। यदि पार्टी उम्मीदवारों के चयन के साथ-साथ बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता और समन्वय को मजबूत करती है, तो चुनावी परिणामों में सकारात्मक बदलाव संभव है।
इस प्रकार, दिल्ली में आयोजित कांग्रेस की चुनाव समिति की बैठक केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि बिहार चुनाव को लेकर पार्टी की रणनीतिक सोच और राजनीतिक पुनर्स्थापन का संकेत है। अब देखना यह होगा कि यह मंथन जमीन पर कितना असर दिखा पाता है और कांग्रेस बिहार की राजनीति में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में कितनी सफल होती है।

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