
किसी भी देश में छात्र आंदोलन (Student Movement) किसी भी राष्ट्र के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक ताने-बाने को आकार देने में एक महत्वपूर्ण शक्ति रहे हैं। यह छात्रों द्वारा अपनी चिंताओं को व्यक्त करने का एक संगठित और सक्रिय तरीका है, जिसमें विरोध प्रदर्शन, अनशन और धरना जैसी सशक्त गतिविधियाँ शामिल होती हैं। भारत में, छात्रों ने ऐतिहासिक रूप से न केवल शिक्षा सुधारों के लिए आवाज उठाई है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम से लेकर भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों तक, हर महत्वपूर्ण मोड़ पर राष्ट्र की दिशा निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाई है।
भारत के इतिहास में 1974 का बिहार छात्र आंदोलन एक ऐसा महत्वपूर्ण उदाहरण है, जिसने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। यह आंदोलन भ्रष्टाचार, महँगाई, बेरोज़गारी और कुशिक्षा जैसी ज्वलंत समस्याओं के खिलाफ था और इसने जयप्रकाश नारायण (जेपी) के प्रसिद्ध “सम्पूर्ण क्रांति” के आह्वान से प्रेरणा ली थी, जिसमें छात्रों, आम जनता और युवा वर्ग ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
छात्र आंदोलनों की विशिष्ट विशेषताएँ
छात्र आंदोलन अपने स्वरूप और गतिविधियों के कारण अन्य विरोध प्रदर्शनों से भिन्न होते हैं। इनकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
सामूहिक सक्रियता: अपनी मांगों को मनवाने और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए छात्र सामूहिक रूप से और संगठित होकर आगे आते हैं।
सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे: ये आंदोलन अक्सर व्यापक सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों से जुड़े होते हैं। इनमें शिक्षा सुधार, नागरिक अधिकार, गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे प्रमुख होते हैं।
विविध विधियाँ: छात्र अपनी आवाज को मुखर करने के लिए रचनात्मक और प्रभावशाली तरीकों का इस्तेमाल करते हैं। इनमें विरोध प्रदर्शन, धरना, अनशन, सत्याग्रह और नुक्कड़ सभाएँ शामिल हैं।
प्रतिनिधित्व: छात्र आंदोलन एक प्रतिनिधि मॉडल के माध्यम से छात्रों की चिंताओं और आकांक्षाओं को विभिन्न राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय स्तरों पर मजबूती से व्यक्त करते हैं।
भारत में छात्र आंदोलनों का ऐतिहासिक सफर
भारत में छात्र सक्रियता का इतिहास 19वीं सदी से शुरू होता है, जो देश के सामाजिक और राजनीतिक विकास के साथ-साथ चलता रहा है:
19वीं सदी की शुरुआत: भारत में छात्र आंदोलन का सूत्रधार दादाभाई नौरोजी को माना जाता है, जिन्होंने 1848 में ‘स्टूडेंट साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी’ का गठन किया था।
प्रारंभिक 20वीं सदी (स्वदेशी आंदोलन): 1905 के स्वदेशी आंदोलन के समय छात्रों ने ब्रिटिश सामानों और क्लबों का सक्रिय रूप से बहिष्कार किया, जिससे ब्रिटिश शासन पर दबाव बढ़ा।
1913 का पहला बड़ा विरोध: लाहौर के किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज में अंग्रेजी और भारतीय छात्रों के बीच भेदभाव के विरोध में पहला बड़ा संगठित छात्र आंदोलन हुआ।

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन: स्वतंत्रता संग्राम के इस महत्वपूर्ण चरण में छात्रों ने निर्णायक भूमिका निभाई। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध दर्ज कराते हुए देश भर के कॉलेजों को बंद कराने में अपना योगदान दिया।
1974 का बिहार छात्र आंदोलन: यह आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली आंदोलनों में से एक था, जिसने भ्रष्टाचार, महँगाई और बेरोज़गारी के खिलाफ युवाओं के आक्रोश को जयप्रकाश नारायण के “सम्पूर्ण क्रांति” के आदर्शों से जोड़कर एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप दिया।
1990 का मंडल कमीशन और संस्कृत कॉलेज : इस दशक में भी छात्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें मंडल कमीशन के विरोध में सवर्ण छात्रों का आंदोलन और संस्कृत कॉलेज में महिलाओं के अधिकारों के लिए हुए आंदोलन उल्लेखनीय हैं।
सामाजिक परिवर्तन का वाहक: छात्र आंदोलनों का महत्व
छात्र आंदोलनों का महत्व केवल तत्काल मांगों को पूरा कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि ये राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास और लोकतांत्रिक मूल्यों को पोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
सामाजिक परिवर्तन के उत्प्रेरक: छात्र आंदोलन सामाजिक परिवर्तन लाने और देश में लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे स्थापित व्यवस्थाओं को चुनौती देते हैं और प्रगतिशील विचारों के लिए जमीन तैयार करते हैं।
सरकार पर दबाव: ये आंदोलन सरकार और राजनीतिक दलों पर जनतांत्रिक दबाव बनाते हैं, जो उन्हें नीतियों में सुधार लाने और जवाबदेह बनने के लिए प्रेरित करता है।
युवा शक्ति का प्रदर्शन: छात्र आंदोलन युवा शक्ति और देश के जनतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं। ये भविष्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं की नर्सरी के रूप में कार्य करते हैं।
इस तरह से देखा जाए तो देश में छात्र आंदोलन हमेशा से एक शक्तिशाली बल रहे हैं, जो देश के वर्तमान और भविष्य दोनों को प्रभावित करते हैं। वे न सिर्फ अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं, बल्कि एक बेहतर, न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के निर्माण की दिशा में भी अग्रणी भूमिका निभाते हैं।

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