
तमिलनाडु में 2026 के विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, सत्तारूढ़ अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के भीतर एकता को लेकर सुगबुगाहट तेज़ हो गई है। पार्टी के वरिष्ठ नेता सेंगोट्टैयन ने एक बड़ा बयान देकर हलचल मचा दी है, जिसमें उन्होंने पार्टी के महासचिव एडप्पादी पलानीस्वामी (ईपीएस) से उन सभी नेताओं को वापस लाने की अपील की है जिन्होंने पार्टी छोड़ दी है। सेंगोट्टैयन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो आगामी चुनाव में जीत हासिल करना मुश्किल हो सकता है।
जीत के लिए एकजुटता ज़रूरी
एआईएडीएमके के लिए आगामी विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती है। राज्य में विपक्षी दल, विशेष रूप से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है। इसी बीच, सेंगोट्टैयन का यह बयान पार्टी की अंदरूनी कमजोरियों को उजागर करता है। उन्होंने कहा, “अगर हम उन लोगों को वापस नहीं लाते जो एआईएडीएमके छोड़कर गए हैं, तो हम यह दावा नहीं कर सकते कि अगली सरकार हमारी होगी।” यह बयान सीधे तौर पर उन नेताओं की ओर इशारा करता है जो हाल के वर्षों में पार्टी से अलग हुए हैं।
सेंगोट्टैयन के अनुसार, पार्टी के भीतर फूट और प्रमुख नेताओं का जाना एक गंभीर समस्या है, जिसे तुरंत हल करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि “कई प्रमुख नेता एआईएडीएमके छोड़ चुके हैं और महासचिव को यह तय करना चाहिए कि किन्हें वापस लाना है।” इस बयान से साफ़ होता है कि पार्टी के भीतर एक बड़े वर्ग का मानना है कि केवल मजबूत नेताओं को वापस लाकर ही पार्टी की पुरानी ताकत को बहाल किया जा सकता है। उन्होंने विशेष रूप से दक्षिणी जिलों में पार्टी की स्थिति का जिक्र किया, जहां एआईएडीएमके की पकड़ कमजोर हुई है। उनका मानना है कि इन नेताओं के बिना, पार्टी को चुनावी जीत सुनिश्चित करना मुश्किल होगा।
पलानीस्वामी को 10 दिन का अल्टीमेटम
सेंगोट्टैयन ने अपने बयान को और भी अधिक प्रभावी बनाते हुए पार्टी महासचिव ईपीएस को सीधे तौर पर 10 दिनों का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा, “एआईएडीएमके महासचिव एडप्पादी पलानीस्वामी को 10 दिनों के भीतर पार्टी को एकजुट करने के लिए कदम उठाने चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो मेरे कुछ करीबी दोस्त हैं और हम एक साथ मिलकर इस प्रयास को आगे बढ़ाएंगे।” यह बयान न केवल एक सुझाव है, बल्कि एक तरह की चेतावनी भी है। यह दर्शाता है कि अगर पार्टी नेतृत्व इस मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई नहीं करता, तो असंतुष्ट नेता अपने स्तर पर एकजुट होने की कोशिश कर सकते हैं। यह पार्टी के भीतर एक संभावित विभाजन की ओर भी संकेत करता है।
पार्टी की प्रतिक्रिया
सेंगोट्टैयन के इस बयान पर एआईएडीएमके के राष्ट्रीय प्रवक्ता कोवई सत्यान ने भी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “हमारे नेता (एडप्पादी पलानीस्वामी) सही समय पर इस मुद्दे पर फैसला लेंगे और इस निर्णय के बारे में सभी को सूचित किया जाएगा।” सत्यान का यह बयान सीधे तौर पर सेंगोट्टैयन की मांग को खारिज नहीं करता, बल्कि यह संकेत देता है कि पार्टी नेतृत्व इस मामले पर विचार कर रहा है, लेकिन अभी कोई त्वरित निर्णय नहीं लिया जाएगा। यह एक तरह से पार्टी की रणनीति को सार्वजनिक न करने की कोशिश है, लेकिन इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पार्टी के भीतर इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सेंगोट्टैयन का बयान एआईएडीएमके की वर्तमान स्थिति का एक प्रतिबिंब है। पार्टी जयललिता के निधन के बाद से कई गुटों में बंट गई है। ओ पनीरसेल्वम (ओपीएस) और शशिकला जैसे नेता पार्टी से अलग हो गए हैं या उनकी भूमिका सीमित हो गई है। इन नेताओं के समर्थक अभी भी पार्टी के भीतर मौजूद हैं, और सेंगोट्टैयन जैसे वरिष्ठ नेता शायद इन्हीं गुटों को एकजुट करने की बात कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर एआईएडीएमके को आगामी चुनाव में डीएमके को कड़ी टक्कर देनी है, तो उसे अपनी सभी बिखरी हुई शक्तियों को एक साथ लाना होगा। अकेले एडप्पादी पलानीस्वामी के नेतृत्व में चुनाव लड़ना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि उन्हें सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त नहीं है। सेंगोट्टैयन का बयान इस बात पर जोर देता है कि पार्टी को केवल अपने मौजूदा कोर ग्रुप पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि सभी असंतुष्ट और अलग हुए नेताओं को भी साथ लेना चाहिए।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी 10 दिनों में पार्टी नेतृत्व इस मुद्दे पर क्या कदम उठाता है। क्या पलानीस्वामी सेंगोट्टैयन की मांग पर ध्यान देंगे, या फिर यह विवाद और बढ़ेगा? इस फैसले से तमिलनाडु की राजनीति में एआईएडीएमके का भविष्य निर्धारित हो सकता है।

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